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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
पूर्णतया पालन करने से आप पर प्रसन्न होकर आपको यह वदनकोटर नामक उद्यान उपहार में दिया गया था। तब से आप इसके स्वामी हैं। इस उद्यान में स्वाभाविक रूप से यह बड़ी गुफा भी तभी से विद्यमान है । यह तो मेरो उत्पत्ति के पूर्वकाल की बात हुई। इसके पश्चात् विधि (भाग्य) ने विचार किया कि ये बेचारे दोनों स्त्रीरहित हैं जिससे सुख से नहीं रह पाते हैं, अतः इनका विवाह किसी सुन्दर स्त्री से करवा दूं। उसके पश्चात् करुणा-परायण विधि ने आप दोनों के निमित्त ही इस महाबिल (गुफा) में मेरी स्वामिनी रसना की रचना कर रख दिया और मुझे उसकी दासी बनाया। यही हम दोनों का वृत्तान्त है।
उपरोक्त वृत्तान्त सुनकर जड़ कुमार ने विचार किया कि-अहा ! मैंने पहिले जैसा सोचा था वैसी ही बात निकली । इस रसना को विधि ने मेरे लिये ही निर्मित की है । धन्य है मेरे बुद्धिवैभव को !
विचक्षण कुमार ने मन में विचार किया कि यह विधि कौन है ? ठीक, समझ में पाया; यह तो महाराज कर्मपरिणाम ही होने चाहिये, अन्य किसी में तो इतनी शक्ति हो ही नहीं सकती।
जड़ (दासी से)-हाँ, तो भद्रे! उसके बाद क्या हया?
लोलता दासी-कुमार ! उसके बाद मेरी स्वामिनी रसना के साथ मैं आप दोनों के साथ नाना प्रकार के अच्छे-अच्छे भोज्य पदार्थ खाती, विविध रसों से भरपुर पेय पदार्थों को पीती और इच्छानुसार चेष्टायें करती रही। अनन्तर विकलाक्ष निवास नगर के तीनों मोहल्लों में और पंचाक्षनिवास के मनुजगति नगर में तथा ऐसे ही अन्य स्थानों में चिरकाल से आपके साथ ही विचरण करती रही हैं। यह रसना देवी दीर्घकाल से आपके साथ रहती आई हैं, अतः यह आपका विरह एक क्षरण के लिये भी सहन नहीं कर सकती हैं। आप पर इसका इतना अधिक स्नेहबन्ध है कि कभी
आप इस बेचारी का तनिक भी तिरस्कार कर दें तो इसको तत्काल मूर्छा आ जाती है और मृतप्राय हो जाती है । इसीलिये मैंने कहा कि हमारा आपके साथ चिर काल से जान पहचान है। जड़ कुमार की रसना-लब्धता
लोलता की बात सुनकर जड़ कुमार मन में अतिशय तुष्ट हुआ, मानो उसके समस्त मनोरथ परिपूर्ण हो गये हों । पुनः उसने लोलता दासी से कहासुन्दरी ! यदि तू जैसा कह रही है वह ठोक है तो तेरी स्वामिनी मेरे नगर में प्रवेश करें और मेरे भव्य राजमहल में निवास कर उसे पवित्र करें जिससे मैं तुम्हारी स्वामिनी के साथ में बहुत समय तक सुखपूर्वक रह सकू ।
लोलता-- नहीं, देव ! आप ऐसी आज्ञा न दें। मेरी स्वामिनी इस वदनकोटर उद्यान से बाहर कभी भी नहीं निकली हैं। आपने पहिले भी यहीं रहकर
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