Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
View full book text
________________
प्रस्ताव ४ : विमर्श और प्रकर्ष
४६६
विमर्श - हमें जिस बात को जानने का कौतूहल था वह श्रापके उत्तर से पूर्ण हुआ । आपने सब कुछ वृत्तान्त बताने की सज्जनता दिखाई यह आपकी बड़ी कृपा है । अब हम जाते हैं ।
मिथ्याभिमान - बहुत अच्छा ! तुम अपने कार्य में सफलीभूत हो ।
विमर्श यह वचन सुनकर प्रसन्न हुआ । दोनों ने सिर को सहज झुका कर प्रणाम किया और राजसचित्त नगर से बाहर निकले ।
विमर्श - भाई प्रकर्ष ! मिथ्याभिमान से हमने सुना कि विषयाभिलाष के पाँच अधिकारियों में से एक रसना भी है । अब हमें स्वयं विषयाभिलाष से मिलकर रसना के गुणों से उसके स्वरूप के सम्बन्ध में निश्चय करना चाहिये । अतः चलो, अब हम त मसचित्त नगर में चलें ।
प्रकर्ष – जैसी मामाजी की इच्छा ।
तामसचित्त नगर
उसके बाद दोनों मामा-भाणजा तामसचित्त नगर जाने के लिये वहाँ से निकले और क्रमशः चलते हुए वहाँ पहुँचे । इस नगर के सब अच्छे मार्ग मूल से ही नष्ट हो गये थे, इसी कारण शत्रु इस किले को लांघ नहीं पाते थे, अर्थात् इस पर अधिकार प्राप्त नहीं कर पाते थे । यह नगर सर्वथा प्रद्योत रहित अर्थात् अन्धकारमय रहता था, चोर लोग यहाँ भलीभाँति प्रश्रय प्राप्त कर संबंधित होते थे, पाप- पूर्ण मनुष्यों को यह नगर सर्वदा प्रिय लगता था, शिष्टजनों को इस नगर के प्रति सर्वदा तिरस्कार रहता था, अनन्त दुःखसमुद्र को पोषरण करने का कारणभूत था और समस्त प्रकार के सुख तथा उन्नति के लिये यह नगर सदा बाधक था । [१-२]
विचक्षरणाचार्य कहते हैं कि यह नगर ऐसा होने पर भी विमर्श और प्रकर्ष को कैसा दिखाई दिया, वह श्रापको बताता हूँ । भयंकर दावानल लगने से काले पड़े हुए जंगल जैसा यह नगर उन्हें दिखाई दिया । यद्यपि इस नगर में भी अधिक लोग नहीं थे तथापि उसकी श्री शोभा नष्ट नहीं हुई थी । [३] नगर की ऐसी दशा देखकर प्रकर्ष ने
पूछा- मामा ! इस नगर का कोई
रक्षक है या नहीं ? [४]
विमर्श - इस नगर का भी कोई विशेष रक्षक हो ऐसा तो नहीं लगता, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि नायक जैसे आकार को धारण कर कोई मनुष्य साधारण तौर पर काम चला रहा है । ५ ]
F
मामा-भारणजा वार्तालाप कर ही रहे थे कि उन्होंने शोक नामक पाडीरिक अधिकारी को देखा । उसके आस-पास दैन्य, प्राक्रन्दन, विलपन आदि कई प्रधान पुरुष चल रहे थे और ऐसा लग रहा था कि वे तामसचित्त नगर में प्रवेश करने की इच्छा रखते हैं । विमर्श और प्रकर्ष ने पहले तो उनके साथ सहज वार्तालाप किया और फिर पूछा- भद्र ! इस नगर का राजा कौन है ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org