Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ३ : चार प्रकार के पुरुष
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तिरस्कार किया है । इतना जानने के पश्चात् गृहस्थावस्था में रहते हुए भी जिनागम के द्वारा वस्तु-स्वरूप को बराबर समझकर स्पर्शनेन्द्रिय की लोलुपता में किसी प्रकार के अनाचरणीय कार्य का आचरण नहीं करते। आगे चलकर ऐसे प्राणियों को जिनागम का विशेष ज्ञान होता है जिससे उन्हें शासन के प्रति स्थिरता प्राप्त होती है और वे स्पर्शनेन्द्रिय के साथ अपने जो थोड़े बहुत सम्बन्ध शेष रह गये होते हैं उन्हें भी त्याग कर, भागवती दीक्षा लेकर, मन को अत्यन्त निर्मल कर, संतोष भाव धारण कर, अत्यन्त निःस्पृह बनकर कृतार्थ हो जाते हैं। तत्पश्चात् इस भयंकर संसार अटवी से विरक्त होकर, पाप रहित होकर, मन में महोसत्त्व को धारण कर स्पर्शनेन्द्रिय के जो प्रतिकूल हो उसे स्वीकार करते हैं, किन्तु स्पर्शनेन्द्रिय के अनुकूल किसी भी कार्य का सेवन नहीं करते । वे भूमि पर सोते हैं, कोमल शय्या का त्याग करते हैं, अपने सिर और दाढी मूछ के बालों का लुचन करते हैं । इस प्रकार स्पर्शनेन्द्रिय के प्रतिकूल अनेक शारीरिक कष्टों को वे प्रसन्नता से वरण करते हैं और स्पर्श सुख की किंचित् भी इच्छा नहीं रखते जिससे उन्हें क्लेशजन्य किसी भी प्रकार की आकुलता नहीं होती। इस प्रकार समग्र कर्मों से होने वाले क्लेशों का नाश कर, स्पर्शनेन्द्रिय पर पूर्णरूपेण विजय प्राप्त कर अन्त में वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं । हे राजन् ! ऐसे प्राणियों को विचक्षण पुरुष उत्कृष्टतम वर्ग के मनुष्य कहते हैं और जो प्राणी इस प्रकार की प्रवृत्ति करते हैं वे महा भाग्यशाली होते हैं । पर, यह सच है कि ऐसे उत्कृष्टतम वर्ग के प्राणी इस संसार में विरले ही होते हैं।
_ [७६-८४] मनीषी की विचारणा
आचार्य श्री प्रबोधनरति के ऐसे वचन सुनकर विशुद्धचेता मनीषी ने अपने मन में सोचा कि, अहो! आचार्य भगवान् ने स्पर्शनेन्द्रिय का जैसा स्वरूप अभी बत या और कहा कि इस लोक में यह दुर्दमनीय है, ठीक ऐसा ही स्पर्शन का स्वरूप बोध और प्रभाव ने मुझे पहले बताया था। उन्होंने कहा था कि, यह महाबलशाली स्पर्शन अन्तरग नगर का निवासी योद्धा है । इससे लगता है कि स्पर्शनेन्द्रिय ही स्पर्शन के नाम से पुरुष के रूप में हम सब को ठग रही है, अन्यथा ऐसा कैसे हो सकता है ? प्राचार्य ने जिस उत्कृष्टतम पुरुष का वर्णन किया है, वैसा ही वर्णन स्पर्शन ने भवजन्तु के विषय में मेरे समक्ष किया था। उस समय स्पर्शन ने यह भी कहा था कि सदागम के प्रभाव से उसने मुझे छिटक दिया था और सन्तोष के सहयोग से निवृत्ति नगरी को चला गया था। बोध और प्रभाव ने जो वर्णन पहले किया था वह अभी आचार्य श्री द्वारा किये गये वर्णन से मिलता है, जिससे इसका रहस्य समझ में आ जाता है; अतएव इस सम्बन्ध में मुझे किसी प्रकार का संदेह नहीं रहा। अन्य तीन प्रकार के पुरुषों का वर्णन सुनने से मुझे सारा रहस्य
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