Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ३ : विमलानना और रत्नवती
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किया तब उसने आश्चर्य से कहा, 'अरे ! तुम कहाँ से ? सुमति, वरांग और केसरी अपने परिवार सहित यहाँ कैसे ?' कहते-कहते कनकशेखर ने स्नेह पूर्वक उन्हें उठाया
और प्रेम से गले मिला। जब मैंने पूछा कि, 'कुमार ! ये कौन हैं ?' तब उसने बताया कि 'ये उसके पिताजी के महामात्य हैं।' एक दूसरे से मिलने के बाद हम सब राज सभा में आये और पिताजो के पास बैठे। मन्त्रियों का निवेदन
फिर पिताजी ने कनकशेखर से कहा--कनकशखर ! तुम्हारे पिताजी के मन्त्रियों ने मुझे जो कुछ कहा है, वह सुनो-वे कह रहे हैं कि तुम अपने पिताजी कनकचूड को कुछ भी कहे बिना घर से निकल गये । तुरन्त ही भृत्यों द्वारा उन्हें पता चला कि तुम महल में कहीं भी दिखाई नहीं देते तब मानो उन पर अकस्मात वज्र प्रहार होने से वे चूर-चूर हो गये हों, परवश हो गये हों. पागल हो गये हों, मूछित हो गये हों, इस प्रकार चेतना रहित हो गये । रानी अाम्रमंजरी भी बहुत घबरायी और थोड़ी देर तो वह स्वयं भी अचेतन (मूछित) हो गई। फिर राजसेवकों ने पंखा झला, चन्दन का लेप किया और कई प्रकार के उपचार किये तब उन्हें चेतना आयी। तब 'हा पुत्र ! तू कहाँ गया ?' * कहकर दोनों विलाप करने लगे। नौकरचाकर और भाई-ब धुनों के विलाप से पूरे राजमहल में हाहाकार मच गया । मंत्रीमण्डल ने मिलकर उस समय उन्हें धीरज बंधाया और कहा, 'महाराज! इस प्रकार विलाप करने से तो कुमार मिलेगा नहीं । आप विषाद का त्याग करें, धीरज रखें और कुमार को ढूंढने का प्रयत्न करें।' राजा ने उनकी बात अनसुनी करदी और अधिक व्यथित एवं विह्वल हो गये।
राजा-रानी की ऐसी दशा देखकर कुमार के सेवक चतुर ने मन में विचार किया कि इनको शोकातिरेक से अधिक दुःख हो रहा है। यदि ऐसा ही अधिक समय तक चलता रहा तो इनके प्राण निकल जायेंगे । ऐसी दशा में अब मुझे उपेक्षा नहीं करनी चाहिये । ऐसा सोचकर चतुर ने राजा के पांवों में गिरते हुए कहा- 'कुमार किसी कारण से यहाँ से बाहर चले गये हैं पर वे जीवित हैं-यह निश्चित है।' इतना सुनते ही राजा को पुनः चेतना आई, तब उन्होंने चतुर से पछा कि 'कुमार यहाँ से किसलिये और कहाँ गये ?' चतुर ने बताया कि 'कुमार ने यहाँ से जाने का कारण तो नहीं बताया है, किन्तु चातुर्य के कारण मैंने संकेत पा लिया है। मेरे विचार से वे जयस्थल नगर अपनी भुवा के यहाँ गये होंगे ; क्योंकि नन्दादेवी (नन्दिवर्धन की माता) पर कुमार का बहुत प्रेम है और पद्मराजा पर भी बहुत प्रेम है । मेरा कुमार से अधिक परिचय होने से मैं इतना कह सकता हूँ कि मेरा अनुमान ठीक ही होगा; क्योंकि यहाँ से जाकर यदि उनके मन को कहीं संतोष प्राप्त हो सकता है तो वह नन्दादेवी के राज्य में ही हो सकता है, अन्यत्र कहीं नहीं ।' राजा ने चतुर * पृष्ठ २४२
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