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प्रस्ताव ३ : अंबरीष युद्ध और लग्न
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वैश्वानर - किसी भी प्राणी ने किंचित् भी अपराध किया हो, या न किया हो उसे बिना विचारे, बिना दया किये मार देने पर ही यह हिंसा देवी तुम पर अधिक अनुरागिरणी हो सकती है ।
नंदिवर्धन - यदि हिंसादेवी मुझ पर अधिक अनुरागवती हो तो उसका परिणाम क्या होगा ?
वैश्वानर - भाई नंदिवर्धन ! मेरे से भी इसका प्रभाव तो अत्यधिक है । जब मैं किसी पुरुष में प्रवेश करता हूँ तब वह प्रत्यन्त तेजस्वी बन जाता है और प्राणियों को त्रास मात्र दे सकता है । परन्तु, जब हिंसा किसी प्राणी पर आसक्त हो जाती है तब उसके प्रभाव से उसके दर्शन मात्र से विपक्षी के प्राणों का नाश हो हो जाता है, अतः यह तेरे पर अधिक अनुरागवती हो ऐसे उपाय कर ।
नन्दिवर्धन - 'ठीक, मैं ऐसा ही करूंगा ।
वैश्वानर- बड़ी कृपा ।
उसके पश्चात् रास्ते चलते हुए जंगल में रहने वाले खरगोश, हिरण, सियाल, सूर, सांरग प्रादि हजारों पशुओं को मैंने बिना प्रयोजन ही मार डाला । अपने मित्र वैश्वानर की शिक्षा को पूरा करने के लिये ही मैं ऐसा करता था । ऐसा करने से मेरी नवपरिणीता पत्नी हिंसा देवी मुझ पर बहुत प्रसन्न हुई और मुझ पर पूर्ण अनुरागमयी हुई । अन्त में मेरी यह प्रवृत्ति यहाँ तक बढो कि मुझे देखकर ही प्राणीमात्रत्रास से कांपने लगे और किसा-किसी जीव के तो प्रारण मुझे देखने मात्र से निकलने लगे । मेरे मित्र वैश्वानर ने मुझे हिंसा का जो प्रभाव बताया था कि दर्शन मात्र से अन्य प्राणी के प्राण निकल जायेंगे, उस पर अब मुझे विश्वास हो गया ।
अंबरीष युद्ध
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और लग्न
२२ :
अम्बरीष जाति के डाकू
कनकशेखर और मैं ( नन्दिवर्धन) सेना के साथ चलते हुए कनकचूड की राजधानी कुशावर्तपुर की सीमा के समीप पहुँच गये । वहाँ एक विषमकूट पर्वत था । इस पर्वत पर महाराज कनकचूड के राज्य में बड़े-बड़े उपद्रव करने वाले श्रम्बरीष जाति के डाकू रहते थे । इन डाकुओंों ने पहले भी राजा कनकचूड के प्रजाजनों को बहुत त्रास दिया था । ये डाकू इस राज्य से बहुत शत्रुता रखते थे और उसे क्रियान्वित करने के प्रसंग ढूंढते रहते थे । जब उन्हें समाचार मिले कि शत्रु कनकचूड राजा का बड़ा राजकुमार कनकशेखर इस रास्ते से होकर कुशावर्तपुर जा रहा है, तो वे तुरन्त ही रास्ता रोककर बैठ गये । हमारी औौर डाकुओंों की सेना जब
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