Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ४ : रिपुदारण और शैलराज
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उत्तर में शैलराज ने कहा- कुमार ! मैंने यह लेप किसी से प्राप्त नहीं किया है, स्वयं अपने वीर्य (शक्ति) से ही बनाया है । इसका नाम स्तब्धचित्त है । इसका कितना शक्तिशाली प्रभाव है, यह तो आपको स्वयं के अनुभव से ही ज्ञात हो सकेगा। अभी इस पर अधिक विवेचन करने से क्या लाभ है ?
मैंने कहा- जैसी मित्र की इच्छा।
फिर एक दिन शैलराज आत्मीय स्तब्धचित्त लेप मेरे पास लाया और मुझे अर्पण किया। मैंने भी वह लेप तत्क्षगा ही अपने हृदय पर लगाया जिससे मेरी स्थिति सूली पर चढ़ाये हुए चोर जैसी हो गयी । किसी के सामने झुकने की तो मैंने बात ही छोड़ दी । मेरे इस परिवर्तन को देख कर सम्पूर्ण सामन्त वर्ग और अधिकारी वर्ग मुझे और अधिक झुक कर प्रणाम करने लगा। बात यहाँ तक बढ़ गई कि मेरे पिताजी भी मुझ से हाथ जोड़कर बात करने लगे और मेरी माताजी तो मुझ से इतने नम्र वचनों से बोलने लगीं मानों मैं उनका स्वामी होऊँ ! हृदय पर लेप लगाने का इतना अच्छा परिणाम देखकर मुझे इस लेप पर अत्यन्त विश्वास हुआ और मेरी यह दृढ़ धारणा हो गयी कि शैलराज मेरा सच्चा इष्ट मित्र और परम बन्धु है।
२. मृषावाद एक दिन मैं क्लिष्टमानस नामक अन्तरंग नगर में गया। यह नगर समस्त दुःखों का स्थान था। इसमें धर्म को तिलांजली देने वाले लोग ही रहते थे। यह नगर सभी पापों का उद्गम स्थान और दुर्गति में जाने का सीधा द्वार जैसा था। [१]
उस नगर में दुष्टाशय नामक राजा राज्य करता था। वह समस्त प्रकार के दोषों का जन्म स्थान, महाभयंकर कर्मों का भण्डार और सद्विवेक राजा का जगत् प्रसिद्ध शत्रु था। [२]
उस दुष्टाशय राजा के जघन्यता नामक रानी थी जो अधम प्राणियों को अभीष्ट थी, समझदार और विद्वान् लोगों द्वारा निन्दित और तिरस्कृत थी तथा समस्त प्रकार के निन्दनीय और तुच्छ कार्यों की प्रवर्तिका थी । [३]
इस दुष्टाशय राजा और जघन्यता रानी का अतिशय अभीष्ट मृषावाद नामक एक पुत्र था। यह समग्र प्राणियों के आपसी विश्वास को भंग करवाने वाला था, संसार के समस्त दोषों से परिपूर्ण था और विचक्षण बुद्धिमानों की दृष्टि में गर्हित एवं त्याग करने योग्य था। [४]
_इस नगर में शाठ्य (दुष्टता), पैशुन्य (चुगली), दौर्जन्य (दुर्जनता), परद्रोह (अन्य का बुरा चाहना) आदि अनेक चोर रहते थे । ये सभी राजकुमार मृषावाद की कृपा प्राप्त करने के लिये उसकी सेवा करते थे । स्नेह, मित्रता, प्रतिज्ञा
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