Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ४: विचक्षण और जड़
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विचक्षणाचार्य-चरित्र
रसना-प्रबन्ध [हे अगृहीतसंकेता! विचक्षणाचार्य ने अपना चरित्र मेरे पिता राजा नरवाहन के समक्ष इस प्रकार कहना प्रारम्भ किया कि जिसे मैं भी सुन सकू।] *
इस लोक में अनेक प्रकार के वृत्तान्तों (घटनाओं) से परिपूर्ण, आदिअंत-रहित, अत्यन्त मनोहर एवं दर्शनीय भूतल नामक नगर है। इस नगर पर मलसंचय नामक राजा राज्य करता है। इस राजा को त्रैलोक्य में प्रसिद्धि है, देवताओं का भी नायक है, अतिशय प्रताप का धारक है और इसकी आज्ञा सर्वदा अनुल्लंघनीय होती है । इस राजा के भुवन-विश्रुत तत्पक्ति नामक रानी है जो अच्छे बुरे सभी कार्यों पर सर्वदा दृष्टि रखती है। इन राजा-रानी के अपने श्रेष्ठ व्यवहार से जगत् को आह्लादित करने वाला एक शुभोदय नामक पुत्र है तथा दूसरा पुत्र सभी लोगों को संताप देने वाला जगत्प्रसिद्ध अशुभोदय है। [७-११]
शुभोदय कुमार पर अत्यन्त प्रेम रखने वाली, पतिव्रता, अत्यन्त रूपवती, लोकप्रिय, सौन्दर्यमूर्ति और कमललोचना निजचारुता नामक पत्नी है। अशुभोदय कुमार के समस्त प्राणियों को सन्ताप देने वाली अत्यन्त भयंकर स्वयोग्यता नामक स्त्री है। [१२-१३]
- निजचारुता और शुभोदय को समय के परिपक्व होने पर विचक्षण नामक पुत्र की प्राप्ति होती है तथा स्वयोग्यता और अशुभोदय को जड़ नामक अधम पुत्र की प्राप्ति होती है । [१४-१५] विचक्षण
___ इन दोनों कुमारों में विचक्षण कुमार जैसे-जैसे बड़ा होने लगा वैसे-वैसे उसमें सभी प्रकार के गुणों की भी वृद्धि होने लगी । वह मार्गानुसारी में जो गुण होते हैं उनका ज्ञाता, गुरुत्रों की निरन्तर भक्ति करने वाला, महाबुद्धिशाली, उत्कृष्ट गुणों के प्रति प्रेमवृत्ति वाला, दक्ष, अपने लक्ष्य (साध्य) को जानने वाला, जितेन्द्रिय, सदाचार परायण, धैर्यवान्, अच्छी वस्तुओं का उपभोक्ता, मित्रता को दृढ़ता के साथ निभाने वाला, सुदेव की मन से पूजा करने वाला, महान् दानेश्वरी, अपने और अन्य के मनोभावों को जानने वाला, सत्यवक्ता, अतिनम्र, प्रेमियों के प्रति वात्सल्य वाला, क्षमाशील, मध्यस्थ वृत्ति से काम करने वाला, प्राणियों की इच्छा पूर्ण करने में कल्पवृक्ष के समान, धर्म पर दृढ विश्वास रखने वाला, पवित्रात्मा, प्रापत्ति में भी अखिन्न रहने वाला, स्थानों के मूल्य और भेद को जानने वाला, दुराग्रह रहित, समस्त शास्त्रों के तत्त्वों का जानकार, वाणीकुशल, नीति-निपुण, शत्रुओं को त्रास देने वाला, स्वगुणों के मद से रहित, परनिन्दा से मुक्त, सम्पदा-लाभ में भी हर्षित नहीं होने वाला और मानो उसका जन्म ही दूसरों के उपकार के लिये
* पुष्ठ ३२५
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