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उपमिति-भव-प्रपंच कथा फूल रहा है, पर निरा मुर्ख ही लगता है ! जैसे पवन से भरी हई धौंकनी फूलकर कुप्पा हो जाती है, पर पवन के निकलते ही पिचक जाती है इसी प्रकार इसने अभिमान से फूलकर अपनी झठी ख्याति फैला दी, पर अन्दर में कुछ दम नहीं था। अथवा यदि कोई व्यक्ति निरक्षर होने पर भी वाचाल हो अपनी वाणी के आडम्बर से लोगों के मध्य में गौरव एवं प्रसिद्धि प्राप्त कर भी ले तो भी परीक्षण के अवसर पर वह मूर्ख विडम्बना मात्र ही प्राप्त करता है और इस रिपुदारण कुमार की भाँति ही लोगों में हँसी का पात्र बनता है। भयातिरेक से व्याधि
मेरे पिताजी और कलाचार्य को परस्पर कान में बात करते देख कर मैंने सोचा कि पिताजी और प्राचार्य किसी भी प्रकार मुझ पर दबाव डालकर मुझे कलाओं का वर्णन करने के लिये बाध्य करेंगे। इस विचार से मैं अत्यधिक भयभीत हुमा । फलतः मेरे कण्ठ का नाडीजाल अवरुद्ध हो जाने से मेरा सांस रुक गया । मेरी दशा मृतप्रायः जैसी हो गई। यह देखकर मेरी माता विमलमालती दौड़कर मेरे पास आई और 'अरे पुत्र ! हा वत्स ! हा तनय ! तुझे यह क्या हो गया ?' कहती हुई मेरे शरीर से लगकर रोने लगी। मेरे पारिवारिकजन आकुल-व्याकुल हो गये, रानी वसुन्धरा किंकर्तव्यविमूढ हो गई और नरकेसरी राजा विस्मित हुए। सभा का विसर्जन
उस वक्त योग्य अवसर देखकर मेरे पिताजी ने कहा-'हे दर्शकगणों! आज तो आप लोग वापीस पधार जावें क्योंकि आज कुमार का शरीर स्वस्थ नहीं है, अतः कुमार की परीक्षा अन्य किसी दिन की जायगी।' पिताजी के वचन सुनकर लोग स्वयंवर मण्डप से बाहर निकल गये और नगर के तिराहों, चौराही और चौक आदि स्थानों पर झुण्ड में इकट्ठ होकर, अहो रिपुदारण का पाण्डित्य ! अहो इसका वैदुष्य ! देखो सभा में एक अक्षर भी नहीं बोल सका । इस प्रकार बोलते हुए हँसने लगे। मेरे पिताजी ने लज्जा से सिर नीचे झुका कर कलाचार्य और नरकेसरी राजा को भी विदा किया। नरकेसरी राजा ने अपने स्थान पर जाकर सोचा कि जो देखना था वह तो देख लिया, कुमार में कुछ दम नहीं लगता, अत: कल प्रातः यहाँ से प्रस्थान कर देना चाहिये।
जब लोग चले गये और नरकेसरी राजा आदि विदा हो गये तब वह स्थान जनरहित होने पर मेरे जी में जी आया और मेरा भय तनिक दूर हुआ जिससे मैं कुछ स्वस्थ हुआ। पिताजी की चिन्ता
___ मे पिताजी को तो इतना प्रबल आघात लगा कि मानों उन्होंने अपना पूरा राज्य ही खो दिया हो, उन पर किसी ने व्रज का दारुण प्रहार किया हो, इस प्रकार पूरा दिन उन्होंने चिन्ताग्रस्त होकर व्यथित दशा में व्यतीत किया। वे अपने मन में इतने क्षुब्ध हुए कि नियमानुसार संध्या समय होने वाली राज्यसभा में भी उपस्थित
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