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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
तभी तक वे इस संसार में सब प्रकार के दुःख भोगते हैं और तभी तक स्वर्ग एवं मोक्ष के श्रेष्ठतम मार्ग को प्राप्त नहीं कर पाते । जब प्राणी इस महादेवी की विधि पूर्वक सम्यक प्रकार से प्राराधना करते हैं तभी वे अनेक प्रकार के कल्याण समूह को प्राप्त कर अन्त में मोक्ष को प्राप्त होते हैं । इसीलिये इसे लोकहितकारी कहा गया है । [(-३]
अन्य दर्शनों और जैन दर्शन में महापुरुषों द्वारा प्रतिपादित संसार-सागर से पार उतारने वाले जो कुछ शास्त्र हैं उन सब में बुद्धिशाली तत्त्वचिन्तकों ने परमार्थतः इस महादेवी को ग्रहण एवं आदर करने योग्य बताया है अर्थात् तत्त्वज्ञ शास्त्रकार सूचित करते हैं कि सब को इस देवी को स्वीकार करना चाहिये । इसीलिये चारुता देवी को सर्व शास्त्रों के अर्थ की कसौटी कहा गया है। इस देवी की अनुपस्थिति में शास्त्र की सभी बातें असद्बुद्धि समूह जैसी लगती है। [४-६]
दान, शील, तप, ध्यान, गुरुपूजा, शम, दम आदि जितने भी शुभ अनुष्ठान लोगों में प्रवर्तित हैं, उन सब को * यह महादेवी अपने बल से महात्मा जनों में प्रवर्तित करवाती है। इसीलिये उसे श्रेष्ठ अनुष्ठान प्रवर्तिका कहा गया है। [७-८]
इस लोक में काम, क्रोध, भय, द्रोह, मोह, मत्सर, विभ्रम, शठता, निन्दा, राग, द्वेष प्रादि जितने भी पाप के कारण हैं, वे सब कभी भी त्रैलोक्य में भी इस चारुता देवी के साथ एक स्थान पर नहीं ठहर सकते । इसीलिये इसे पाप से दूर रहने वाली कहा गया है। [६-१०] दयाकुमारी
शुभपरिणाम राजा और चारुता देवी की एक दयाकुमारी नामक पुत्री है, जो विश्व को आह्लादित करने वाली, रूप में सुन्दर, सगे-सम्बन्धियों को अत्यन्त प्यारी और प्रानन्द-परम्परा की कारणभूत होकर स्त्री होते हुए भी मुनियों के हृदय में निरन्तर निवास करने वाली है।
इस विश्व में रहने वाले सभी चराचर जीव कभी भी दुःख और मरण को नहीं चाहते । प्रत्येक जीव अंतःकरण से चाहता है कि उसे किसी प्रकार का मानसिक या कायिक दुःख न हो, कभी उसका मरण न हो । दयाकुमारी प्राणियों के दुःख और मरण को रोकती है । अनिष्ट को रोकने वाली होने से इसे विश्व को पाह्लादित करने वाली कहा गया है। [१-२]
इस दया के मुख से बार-बार 'भय मत करो ! भय मत करो !!' ऐसे शब्द निरन्तर निकलते रहते हैं । उसका उत्तम दान रूपी मुख चन्द्रमा के समान है। इसके सद्दान और दुःखत्राण नामक दो उन्नत स्तन हैं। संसार को आनन्द देने वाली शम नामक विस्तीर्ण जंघायें हैं । संक्षेप में उसके सामने आने वाले किसी भी प्राणी * पृष्ठ २७२
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