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प्रस्ताव ३ : नन्दिवर्धन की मृत्यु
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वहाँ से हमें भवितव्यता पुनः पंचाक्ष-निवास नगर में ले आई और गोली के प्रयोग से हम दोनों को सिंह की योनि में उत्पन्न किया । वहाँ भी हम खूब लड़े और हमारी वैर-परम्परा सतत चलती रही।
इस प्रकार लड़ते-लड़ते सिंह योनि से मर कर, भवितव्यता की नई गोली के प्रभाव से हम फिर पापिष्ठनिवास नगर को पंकप्रभा नामक चौथी नरक बस्ती में उत्पन्न हुए। वहाँ भी हम दोनों क्रोधोत्कर्ष में एक दूसरे पर सर्वदा प्रहार करते रहे, लड़ते रहे । इस प्रकार आपस में लड़ते मरते हमारी दस सागरोपम की आयु पूर्ण हुई। इस बीच हमने वर्णनातीत दुःख सहन किये।।
वहाँ से भवितव्यता ने फिर हमें बाज पक्षी का रूप प्रदान किया, जहाँ हम दोनों का क्रोध और अधिक बढ़ गया तथा हमारे बीच अनेक युद्ध हुए।
पुनः भवितव्यता ने अपनी गोली के प्रभाव से हमें पापिष्ठ-निवास नगरी की बालुकाप्रभा नामक तीसरी नरक बस्ती में उत्पन्न किया । यहाँ भी हम एक दूसरे को अनेक प्रकार से मार-कूटकर एक दूसरे का चूरा-चूरा कर देते थे । फिर वहाँ उस क्षेत्र की भी विविध पीड़ाएं सहन की । परमाधामी देव वहाँ हमें बहुत त्रास देते थे। ऐसे अनन्त दुःखों को सतत भोगते-भोगते हमारे सात सागरोपम पूर्ण हुए।
पुनः नयी गोली देकर भवितव्यता ने फिर हमें पंचाक्षनगर में नकुल (नोलिये) के रूप में उत्पन्न किया । हम इतने त्रस्त हुए तथापि एक दूसरे पर हमारा वैरानुबन्ध क्रोध और मात्सर्य किंचित् भी कम नहीं हुआ। हम एक दूसरे पर प्रहार करते और अपने शरीर को लहुलुहान कर देते । वहाँ से फिर हमें पापिष्ठ-निवास नगर की शर्कराप्रभा नामक दूसरी नरक बस्ती में ले जाया गया। वहाँ भी हम बीभत्स रूप धारण कर दूसरे का गला घोंटते रहे । परमाधामी देव भी कदर्थना करते हुए, त्रास देते रहे । क्षेत्र की वेदना का भी पार नहीं था । इन समस्त संतापों का अनुभव करते हुए बड़ी कठिनाई से हमने वहाँ तीन सागरोपम का काल जैसे-तैसे पूरा किया।
एक बार पापिष्ठ-निवास में और एक बार पंचाक्ष-निवास में इस प्रकार यहाँ से वहाँ बारम्बार गमनागमन करते हुए, धराधर के साथ वैरजनित संघर्ष करते हुए मैंने भवितव्यता के प्रभाव से अनेक नये-नये रूप धारण किये और विविध प्रकार की विडम्बनायें भोगता रहा । हे भद्रे अगृहीतसंकेता! एक गोली पूरी होते ही पुनः कुतूहल से कर्मपरिणाम राजा की ओर से मुझे दूसरी गोली दे दी जाती और मेरी पत्नी भवितव्यता भी एकभववेद्या गुटिका के साथ ऐसी योजना बनाती रहती कि मैं असंव्यवहार नगर के अतिरिक्त अन्य समस्त नगरों में पुनः-पुनः भटकता रहँ। यों घारणी के बैल की तरह यहाँ से वहाँ भटकते हुए मेरा अनन्त काल व्यतीत हुआ।
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