Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ३ : खूनी नन्दिवर्धन की कदर्थना
३७७ जाकर छोड़ देना अधिक अच्छा है ।' ऐसा निर्णय कर उन्होंने मुझे गाड़ी में पटक कर गाड़ी के साथ ही जकड़ कर बांध दिया और मेरे मुंह पर भी मोटा कपड़ा बांध दिया। इस गाड़ी के साथ मन और पवन के समान वेग से दौड़ने वाले बैल जोड़ दिये गये और गाड़ी में कुछ आदमी भी साथ में बैठ गये । हमारी गाड़ी चली और रात्रि में ही बारह योजन जमीन पार कर गयी । इस प्रकार चलते-चलते हम शार्दूलपुर नगर के निकट पहुँच गये । नगर के बाहर मलयविलय उद्यान में चोरों ने मुझे छोड़ दिया और अपनी गाड़ी लेकर वापस चले गये। शार्दूलपुर के बाहर
थोड़ी देर बाद वहाँ अचानक ही सुरभित पवन चलने लगा । पशुओं में रहने वाला स्वाभाविक वैर भी दूर हो गया । उद्यान में समस्त पृथ्वी की श्री यहीं बस गई हो ऐसा लगने लगा । सारी ऋतुएं एक साथ वहाँ उतर आईं। पथिकों के समूह आनन्द कल्लोल करने लगे। भौंरे सरस ताल-लय में मनहारक गुजारव करने लगे। उस प्रदेश में न अधिक शीत रहा और न ताप । सूर्य उद्योत करने लगा। प्रकृति अनुकूल हुई है और मेरे मन का संताप भी कुछ कम हुआ।
२०. मलयविलय उद्यान में विवेक केवली विवेक केवली का पदार्पण
मलयविलय उद्यान में उस समय बहुत से देवता आ पहुँचे थे। उनके शरीरों पर विभूषित आभूषणों की प्रभा से चारों दिशाओं में प्रकाश फैल गया । उन्होंने उद्यान की भूमि को स्वच्छ किया, सुगन्धी जल का छिड़काव किया, पांच वर्ण के मनोहर पुष्प चारों तरफ फैला दिये, एक विशाल और मणि-रत्न-जड़ित भूमिका (चबूतरा) तैयार की और उसके ऊपर स्वर्ण-कमल की रचना की। उसके ऊपर देवदूष्य वस्त्र का अति सुन्दर चन्दरबा बांधा जिसके चारों तरफ मोतियों की मालायें लटका दीं। ऐसी सुन्दर रचना करने के पश्चात् उत्सुकता पूर्वक मार्ग का अवलोकन करने लगे। मनोवांछित पूर्ण करने में कल्पवृक्ष के समान, मेरु पर्वत के समान स्थिर, क्षीरसमुद्र के समान गुणरत्नों के भण्डार, चन्द्र के समान शीतलेश्या से भूषित, प्रतप्त सूर्य के समान महाप्रतापी, अत्यधिक कठिनाई से प्राप्त होने वाले चिन्तामणि रत्न के समान, अतिशय निर्मल होने से स्फटिक के समान, सर्व सहिष्णुता से पृथ्वी के समान, आकाश जैसे अवलम्बन रहित और केवलज्ञान रूपी सूर्य को धारण करने वाले
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