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उपमिति-भव-प्रपंच-कथा
साथ मेरे विरुद्ध षडयन्त्र रच रहे हैं इस विचार से मेरा प्रज्वलित क्रोध और अधिक भभक उठा और मैंने एक-एक झटकों से ही तीनों को यमलोक पहुँचा दिया।
'हे आर्यपुत्र ! यह क्या अनर्थ कर रहे हैं ? रुकिये ।' कहती हुई विलाप करती हुई मेरी प्यारी कनकमंजरी वहाँ आ पहुँची । मैंने मन में सोचा कि 'यह अधम स्त्री भी शत्रुओं से मिल गई लगती है, इसीलिये यह मेरे कार्य को अनर्थकारी बता रही है और मुझे कोस रहो है । अहो ! मेरे हृदय के समान मेरी प्यारी कनकमंजरी भी आज मेरो वैरिणी बन गई लगतो है, इससे क्या ? यह भी अयोग्य लोगों के प्रति वात्सल्य जताने लगी है, ऐसो मूर्खतापूर्ण वत्सलता को दूर करना ही चाहिये।' इस विचार से कनकमंजरी के प्रति मेरा प्रम-बन्ध टूट गया। इसका विरह सहन कर सकूगा या नहीं यह भी में भूल गया, उसके साथ एकान्त में मैंने कैसो मीठी-मोठो बातें की थी और कैसे-कैसे वचन दिये थे इसका भी स्मरण नहीं रहा, उसके साथ अनेक प्रकार के कामभोग के सुख भोगे हैं यह भी ध्यान से हट गया और उसके साथ मेरा अनुपम प्रेम सम्बन्ध है इसका भी मैंने विचार नहीं किया। वैश्वानर ने उस समय मेरी बुद्धि को इतनी अन्धी बना दी थी और हिंसादेवो ने मेरे हृदय में ऐसा प्रबल स्थान बना लिया था कि आगे-पीछे का विचार किये बिना मैंने बेचारी कनकमंजरी को भी उसी समय तलवार के वार से मार दिया।
इस धमाचौकड़ी में मेरी धोती खुलकर नीचे गिर गई और मेरा दपट्टा भी जमीन पर गिर गया जिससे मैं एकदम नग्न हो गया। मेरे बाल भी बिखर गये जिससे मैं साक्षात् बैताल जैसा दिखने लगा। मुझे इस रूप में देखकर दूर खेलते बच्चे खिलखिला कर हँस पड़े और ताने मारने लगे। इससे मुझे और गुस्सा आया
और मैं उनको मारने के लिये दौड़ा। उस समय मुझे रोकने के लिये मेरे भाई, बहिनें, सगे-सम्बन्धी और सामन्त सब एक साथ मिलकर आये । किन्तु जैसे यमराज सब को समान दृष्टि से देखता है किसी को नहीं छोड़ता वैसे ही मुझे रोकने का प्रयत्न करने वाले उन सभी लोगों को मारते हुए मैं बहुत दूर निकल गया । अन्त में बहुत अधिक लोगों ने इकट्ठ' होकर मुझे चारो ओर से घेरकर जंगली हाथी की तरह बड़ी मुश्किल से पकड़ कर जमीन पर पटक दिया। मेरे हाथ से तलवार छीन ली और मेरे हाथ पीठ पीछे करके कसकर बाँध दिये । फिर मुझे गालियाँ देते हुए कारागृह में बन्द कर दिया । कारागृह में
कारागार के द्वार मजबूती से बन्द कर दिये गये। लोग अनेक प्रकार से जलते हुए व्यंग्य वचनों से मेरी हँसी उड़ाने लगे और अनेक प्रकार के कटु और शिष्ट वचन बोलने लगे। जेल की दोवारों से सिर फोड़ते, भूख से बिलखते, प्यास से पड़फते, अन्तर के सन्ताप से जलते, निद्रा के अभाव में अनेक प्रकार के असहनीय
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