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२६. खूनी नन्दिवर्धन की कदर्थना
मेरे आग लगाने से सम्पूर्ण जयस्थल नगर जल रहा था जिससे मेरे मन में भी भय उत्पन्न हुआ और मैं जंगलों की तरफ मुँह कर भागने लगा । भागतेभागते मैं घोर जंगल में पहुँच गया । मैं कांटों से बिंध गया, तीक्ष्रण पत्थरों और कीलों से पैर घायल हुए, रास्ता भूलकर गलत रास्ते पर पहुँच गया । ऊँचो ढलान पर से पैर फिसलने के कारण सिर के बल नीचे प्रदेश में गिरा, मेरा अंग-अंग भंग होकर चूर-चूर हो गया और मुझे इतने जोर की चोट लगी कि पड़ने के बाद उठने की शक्ति भी नहीं रही ।
चोरों की पल्ली में कदर्थना
मैं इस स्थिति में भयंकर अटवी में पड़ा था कि वहाँ चोर ना पहुँचे और उन्होंने मुझे इस अवस्था में पड़े हुए देखा । मुझे देखकर वे आपस में कहने लगे'अरे ! यह तो कोई महाकाय मनुष्य लगता है, अगर इसे किसी दूसरे स्थान पर लेजाकर बेचा जाय तो अच्छा मूल्य मिलेगा । चलो, इसको उठाकर अपने स्वामी पल्लिपति के पास ले चलें ।' चोरों को इस प्रकार बोलते सुनकर मेरे मन में बसा हुआ वैश्वानर फिर प्रज्ज्वलित हो उठा और मैं बैठ गया । अतः चोरों में से एक ने कहा- 'अरे भाइयों ! इसका विचार अच्छा नहीं लग रहा है, वह हमारे से लड़ने या भागने की इच्छा कर रहा है, अतः इसको तुरन्त बाँध लो अन्यथा इसको पकड़ना दुष्कर होगा ।' फिर चोरों ने धनुष की लकड़ी से मुझे खूब पोटा और मेरे हाथ पीछे कर मुश्कें बाँध दीं । मैं मुँह से गालियाँ देने लगा तो मेरा मुँह भी बाँध दिया । फिर मुझे वहाँ से उठाया मेरे शरीर पर फटा हुआ जीर्ण कपड़ा लपेट दिया और मुझे बार-बार मारते और धमकाते हुए कनकपुर के निकट भोमनिकेतन नामक चोरों की पल्ली में ले गये । वहाँ मुझे रणवीर नामक पल्लिपति के सम्मुख खड़ा किया गया । सरदार ने आदेश दिया - अरे ! इसको अच्छी तरह खिलाश्रो पिलाओ जिससे यह खब मोटा होगा तो इसका मूल्य अधिक मिलेगा ।' सरदार की आज्ञा मानकर एक चोर मुझे अपने घर ले गया ।
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अपने घर लेजाकर चोर ने मेरे मुँह पर बन्धी पट्टी जैसी ही खोली वैसे ही मैंने उन्हें चच्चा-मम्मा की गालियाँ बकनो शुरू की जिससे वह चोर मेरे ऊपर अत्यन्त कुपित हुआ । उसने मुझे डण्डे आदि से खूब मारा । अपने स्वामी ने मुझे उसे सौंपा है. यह समझकर ही उसने मुझे जान से नहीं मारा । मेरे कटु वचनों के कारण वह मुझे कुत्सित भोजन देने लगा। अधिक भूखों मरने से मैं और कमजोर हो गया तथा मेरे मुख पर दोनता छा गई। पहले तो मैंने कुत्सित भोजन खाने से इन्कार किया, पर फिर भूख के मारे खाने लगा । तुच्छ भोजन से मेरा पेट नहीं भरता इससे
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