Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति भव-प्रपंच कथा
? आप बहुत चिन्तित हैं, सेवकों को अपने पास आने की पूर्ण मनाई कर रखी है और आप अकेले पलंग पर पड़े हुए हैं । मेरा तो कल रथ के घोड़े छोड़ने के बाद पूरा दिन उनकी देखभाल में ही निकल गया । रात में मुझे चिन्ता हुई कि मेरे स्वामी के उद्वेग का क्या कारण हो सकता है ? मैंने बहुत विचार किया पर कुछ भी कारण सूझ नहीं पड़ा । चिंता में जागते हुए ही मेरी पूरी रात बात गई । प्रातः काल उठकर मैं आपके पास आ रहा था कि एक अन्य महत्वपूर्ण काम आ गया । इस कार्य को पूर्ण करने में मुझे इतना समय लग गया । कार्य सम्पन्न कर अब में आपके समक्ष उपस्थित हुआ हूँ । आपके कुशल-क्षेम से तो हमारे जैसे अनेक लोगों का जीवन चलता है, अतः आपके इस अधम सेवक को यह बताने की कृपा करें कि आपके शरीर की यह स्थिति किस कारण हुई ?
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इस प्रकार कहते हुए सारथि मेरे पांवों में पड़ गया, तब मैंने सोचा कि, अहो ! इसकी वास्तव में मुझ पर भक्ति है और बात करने की चतुराई भी है, अतः अब इसको वास्तविकता से परिचित करा देना चाहिये । फिर भी कामदेव का विकार और प्रभाव विचित्र होने से मैंने उसे सीधा न बताकर निम्न उत्तर दियानन्दिवर्धन - 'प्रिय तेतलि ! मेरे शरीर और मन की ऐसी स्थिति होने
का कारण मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है । मुझे केवल इतना याद है कि बाजार का रास्ता पूरा होने पर राजभवन के मार्ग पर जब तू अपना रथ ले आया और वहां थोड़ी देर रथ को रोका, तभी से मेरा अंग-अंग टूट रहा है । अन्तस्ताप बढता जा रहा है । ऐसा लग रहा है मानो राजभवन श्राग में जल रहा हो ! लोगों का बोलना अच्छा नहीं लगता, मन हाय-हाय कर रहा है, व्यर्थ की चिन्ता हो रही है। और ऐसा लग रहा है जैसे हृदय शून्य हो गया हो ! मेरी स्थिति तो अभी ऐसी हो गई है कि यह दुःख क्या है ? और इसके निवारण का क्या उपाय है ? यह भी मुझे दिखाई नहीं पड़ता ।
तेतलि -देव ! यदि ऐसी बात है तब तो मैं समझ गया हूँ कि यह दुःख क्या है ? और इसे दूर करने का उपाय क्या है ? आप अब इस विषय में चिन्ता न करें ।
नन्दिवर्धन - वह कैसे ?
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तेतलि - सुने, प्रापके दुःख का कारण कुदृष्टि अर्थात् चक्षुदोष है ।
नन्दिवर्धन मुझे किसकी कुदृष्टि लग सकती है ।
तेतलि - आपने उसे देखा या नहीं यह तो मैं नहीं जानता, पर राज
भवनों के अन्तिम महल के एक झरोखे में से एक तरुणी आपको एकटक आशय पूर्वक देख रही थी । वह बहुत देर तक टेढी दृष्टि से आपके अंगोपांग देख रही थी, इससे लगता है कि उस युवती का दृष्टिदोष ही आपके दुःख का कारण है । कुमार ! जो तुच्छ स्वभाव के होते हैं उनकी दृष्टि बहुत भयंकर क्रूर होती है ।
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