Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ३ : कनकमंजरी
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में बिखरे तारे लाखों अंगार-कणों जैसे लग रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे कमल शय्या मुझे जला रही है और यह सिन्दुरी पुष्पों का हार मुझे पूरी तरह सुलगा रहा है । हे माँ ! मैं तुझे क्या कहूँ ? अभी ता मुझ अभागिनी पापिनी का पूरा शरीर सुलगते हुए अग्निपिण्ड के समान सुलग रहा है । कनकमंजरी की व्याधि का कारण
पुत्री का ऐसा अचित्य उत्तर सुनकर मलयमंजरी ने दीर्घ निश्वास लेते हुए कहा-'कपिंजला! यह क्या हुआ ? मेरी पुत्री को ऐसा भीषण दाह-ज्वर क्यों हुआ? इसका कुछ कारण तेरी समझ में आता है क्या ?' उस समय मैंने मलयमंजरी के कान में कन्दलिका दासी द्वारा कही गई बात कह सुनाई।
सुनकर मलयमंजरी ने कहा-'यदि ऐसा ही है तो ऐसे समय हमको क्या करना चाहिये ?' उसी समय राजमार्ग पर किसी की आवाज सुनाई दी, अरे ! यह काम तो सिद्ध हुआ। अब विलम्ब नहीं करना चाहिये।
कपिजला ने सहर्ष) कहा-'माताजी ! राजमार्ग पर अचानक किसी के मुह से निकले हुए शब्द आपने सुने ?' रानी ने उत्तर दिया-'हाँ, मैंने बराबर सुने हैं।' मैंने कहा-'यदि यह बात है तो कुमारी कनकमंजरी की इच्छा पूर्ण हो हो गई ऐसा समझिये । अभो मेरो बांयी आँख भी फड़क रहो है, अत: मुझे तो थोड़ी भी शंका इस विषय में नहीं है ।
मलयमंजरी ने कहा- इसमें शंका की गुंजाइश ही कहाँ है ? यह काम अवश्य सिद्ध होगा।
इधर कनकमंजरी की बड़ी बहिन मणिमजरी भी उस समय राजभवन की छत पर पाकर अत्यन्त हर्षित होकर हमारे सामने बैठो ।
मैंने मणिमंजरी से कहा-'पुत्रि मणिमंजरी ! तू बहुत कठोर है, दूसरों के सुख-दुःख का तेरे मन पर थोड़ा भी प्रभाव नहीं होता क्या ?' मरिणमंजरी ने उत्तर में कहा- 'ऐसी क्या बात है ?' मैंने कहा, 'अरे! क्या तू देख नहीं रही है कि हम सब कितने शोक-मग्न हैं और तू हर्ष विभोर होकर बैठी है।'
मरिणमंजरी-पोहो ! मैं क्या करू ? मेरे हर्ष का कारण इतना सशक्त है कि प्रयत्न करने पर भी मैं उसे किसी प्रकार छिपा नहीं सकती।
मेंने पूछा ---'ऐसा हर्षातिरेक का कारण क्या है वह हमें भी तो बता ? विवाह के लिये कनकचूड की स्वीकृति
मणिमंजरी- 'मैं अाज पिताजी के पास गई थी। उन्होंने बड़े प्यार से मुझे गोद में बिठाया। उस समय भाई कनक शेखर भी पिताजी के पास बैठे थे। उनसे पिताजी ने कहा-'प्रिय कनक ! तू जानता ही है कि समरसेन और द्रुम जैसे महा बलवान योद्धाओं को एक ही वार में मारने वाला नन्दिवर्धन कोई साधारण
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