Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ३ : रौद्रचित्त नगर में हिंसा से लग्न
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इसे नरक का द्वार कहने का कारण यह है कि अपने पाप के बोझ से जिन लोगों को नरक में जाना होता है, * वे ही पहले इस अघम नगर में प्रवेश करते हैं । निर्मल मन वाले प्राणी तो इसी से समझ जाते हैं कि यह नरक में प्रवेश का मार्ग है। इसी से इसे नरक का द्वार और नरक का कारण कहा गया है [६-७]
इस नगर में क्लिष्ट कर्म (अत्यन्त अधम कार्य) करने वाले प्राणी रहते हैं । वे अपने शरीर के लिये स्वयं ही भयंकर दु:ख उत्पन्न कर लेते हैं और दूसरे प्राणियों को भी अनेक प्रकार के दुःख देते हैं । इसी से इसे सम्पूर्ण संसार के सताप का कारण कहा है । अधिक क्या कहें ? त्रिभुवन में भी रौद्रचित्तपुर जैसा निकृष्टतम दूसरा नगर नहीं है [८-१०] दुरभिसन्धि राजा
इस नगर में चोरों को एकत्रित करने वाला, शिष्ट लोगों का परम शत्रु, स्वभाव से ही विपरीत प्रकृति वाला और नीति का लोप करने वाला लगभग चोर जैसा ही दुष्टाभिसन्धि नाम का राजा राज्य करता है।
___ इस संसार में मान, उग्र क्रोध, अहंकार, दुष्टता, लम्पटता आदि जितने भी अन्तरंग राज्य के बड़े-बड़े चोर हैं, वे सब इस राजा की सेवा में रहते हैं । इस प्रकार अन्तरंग राज्य के चोरों का आश्रय-स्थान और पोषक होने से उसे चोरों को एकत्रित करने वाला कहा गया । [१-२]
सत्य, बाह्याभ्यन्तर पवित्रता, तप, ज्ञान, इन्द्रिय-संयम, प्रशम आदि इस लोक में श्रेष्ठ प्रवृत्ति वाले जितने भी सदाचारी लोग हैं, उन सबको मूल से उखाड़ फेंकने के काम में यह राजा निरंतर तत्पर रहता है । इसी से इसको शिष्ट लोगों का परम शत्रु कहा गया है । [३-४]
प्राणियों ने करोड़ों वर्षों तक विशेष प्रयत्न द्वारा जो कुछ भी धर्मध्यान रूपी धर्मधन एकत्रित किया हो, शुभ परिणाम प्राप्त किये हों उन सब को यह राजा अत्यन्त निर्दयता से एक क्षण में जला देता है । और, सरल लोग इसे संतुष्ट करने, इसकी इच्छाओं को पूरा करने का कोई उपाय नहीं कर सकते, इसी से इसे स्वभाव से ही विपरीत प्रकृति वाला कहा गया है । [५-६]
इस लोक में जब तक दुष्टाभिसन्धि राजा बीच में पड़कर नीति का विघटन नहीं करता तभी तक दुनिया में नीति चलती है, परन्तु जब यह प्रकट होता है तब नीति और धर्म कहीं जाकर छुप जाते हैं, इसीलिये बुद्धिमान अनुभवियों ने इसे नीति का लोप करने वाला कहा है। [७-८] निष्करुणता रानी
दूसरों की वेदना को नहीं समझने वाली, पाप के रास्तों में कुशल, चोरों
* पृष्ठ २४५
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