Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ३ : विमलानना और रत्नवती
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कि 'इसकी माँ प्रभावती ने तो इसके जन्म के पहले से ही इसकी सगाई विभाकर से कर दी है, पर अभी यदि मैं इस सम्बन्ध में कुछ न करू तो लड़की के प्राण मुश्किल से बचेगे । अतः इसे शीघ्र ही कनकशेखर के पास पहुँचा देना चाहिये । यह स्वयं कनक शेखर का वरण कर लेगी। इस अवस्था में अधिक समय बिताना उचित नहीं है । कार्य समाप्ति के पश्चात् तो विभाकर को सम्भाल लेंगे।' यह सोचकर पिताजी विमलानना के पास पाकर बोले -- 'पुत्री ! धैर्य रख, शोक न कर, तू कुशावर्त नगर में कनकशखर के पास जा।' इस प्रकार मधुर शब्दों में धैर्य बंधाकर नन्दराजा ने उसे परिजनों के साथ कुशावर्त भेजने की आज्ञा दी। उस समय विमलानना की बहिन रत्नवती ने पिताजी के कहा - 'पिताजी ! मैं अपनी बहिन विमलानना के बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकती । अतः यदि आप आज्ञा दें तो मैं भी बहिन के साथ जाऊं । मैं इतना वचन अवश्य देती हूँ कि मैं कनक शेखर से विवाह करने और बहिन की सौत बनने का प्रयत्न कदापि नहीं करूंगी । स्त्रियों में आपस में कितना भी प्रेम क्यों न हो, पर यदि वे एक दूसरे की सौत बन जाय तो स्नेह बन्धन अवश्य ही टूट जाता है। अतः मैं विमलानना के पति के किसी प्यारे मित्र की पत्नी बनेगी।' रत्नवती के विचार सुनकर राजा ने कहा-'पुत्री ! जैसी तेरी इच्छा हो वैसा कर । मुझे विश्वास है कि मेरी पुत्री स्वयमेव कभी भी अनुचित कार्य नहीं करेगी।' रत्नवती ने पिता की शिक्षा को शिरोधार्य किया और वह भी विमलानना के साथ चल पड़ी । महाराज ! वहाँ से रात-दिन प्रवास कर विमलानना और रत्नवती यहाँ पहँच गई हैं और नगर के बाहर बगीचे में ठहरी हुई हैं । यह वृत्तान्त निवेदन करने के लिए उन्होंने मुझे आपके पास भेजा है । अब आप जैसा उचित समझे वेसी आज्ञा प्रदान करें।
महाराजा कनकचूड ने जब यह बात सुनी तब उन्हें एक ओर अत्यधिक प्रसन्नता और दूसरी ओर गहन विषाद हुआ। फिर उन्होंने चार प्रधानों में से शूरसेन को आज्ञा दी कि आई हुई कन्याओं के ठहरने का समुचित प्रबन्ध करे और उनकी योग्य खातिरदारी करें। पश्चात् हमें (सुमति, वरांग, केशरी तीनों प्रधानों को) बुलाकर कहा- 'अरे प्रधानों ! देखो, नन्दराजा की दोनों पुत्रियाँ कुमार और उसके मित्र के साथ पाणिग्रहण करने आई हुई हैं, यह हमारे लिए बहुत ही आनन्द की बात है पर अभी कनकशेखर कुमार के विरह के कारण यह बात हमें अग्नि में घी डालने और जले पर नमक छिड़कने के समान लगती है । अतः तुम तीनों जयस्थल नगर जाओ ' मुझे विश्वास है कि कुमार वहीं गया है । तुम मेरे जीजाजी पदमराज नपति को मेरी दशा और यहाँ आई कन्याओं के सम्बन्ध में बताना। मझे विश्वास है कि दोनों कारणों को समझ कर जीजाजी कनक शेखर को शीघ्र ही यहाँ भेज देंगे । जीजाजी की आज्ञा लेकर उनके पुत्र नन्दिवर्धन को भी साथ लेते आना,
ॐ पृष्ठ २४४
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