Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
की भूरी-भूरी प्रशंसा की और उसे पारितोषिक में महादान दिया। जाँच करने पर राजा को मालम हा कि इस सब अनर्थ का कारण दुर्मुख मंत्री ही है, अतः उसे कुटुम्ब सहित देश निकाला दे दिया। उसी समय कनकचूड राजा और आम्रमंजरी रानी ने प्रतिज्ञा की कि जब तक वे कुमार का मुह नहीं देखगे तब तक आहार ग्रहण नहीं करेंगे, स्नान नहीं करेंगे और शृगार आदि शरीर-संस्कार नहीं करेंगे।
विशाला से दूत का प्रागमन : प्रयोजन
इधर उसी दिन वहाँ एक दूत आया जिसने कनकचूड राजा को विधिपूर्वक नमस्कार आदि कर निवेदन किया-'देव ! विशाला नगरी में राजा नन्दन राज्य करते हैं। उनके प्रभावती और पद्मावती दो रानियां हैं। इन दोनों रानियों से उत्पन्न विमलानना और रत्नवती नामक दो पुत्रियाँ हैं। इधर रानी प्रभावती का भाई प्रभाकर कनकपुर का राजा है जिसके बुधसुन्दरी नामक रानी है। उनके विभाकर नामक पुत्र है। विमलानना और विभाकर के जन्म के पहले ही प्रभाकर और प्रभावती बचनबद्ध हुए थे कि हम दोनों में से किसी एक को लड़का और दूसरे को लड़की होगी तो हम उन दोनों का विवाह आपस में कर देंगे। इस प्रतिज्ञा के अनुसार विमलानना की जन्म के पहले ही विभाकर से सगाई हो गई थी। विमलानना ने एक बार भाट लोगों से कुमार कनकशेखर की निर्मल यशोगाथा सुनी; जिसे सुनकर विमलानना कुमार पर पूर्णतया अनुरागवती हो गई ; जिससे वह यूथ से बिछुड़ी हरिणी, चकवे से दूर हुई चकवी, स्वर्ग से च्युत देवांगना, मानसरोवर की अति उत्काठेत दूर रही हुई कलहंसी और जुना खेलने वाली साधनहीन स्त्री के समान शून्य हृदया होकर गुमसुम रहने लगी। अब वह न वीणा बजाती है, न गेंद खेलती है, न मेंहदी लगाती है, न चित्रकारी करती है, न अन्य किसी भी कला में रुचि दिखाती है, न शृगार करती है, कोई कुछ पूछे तो उत्तर भी नहीं देती है, दिन-रात का भी उसे ध्यान नहीं है और योगिनी की तरह अाँख की पुतली को हिलाये-चलाये बिना निरालम्ब होकर किसी के ध्यान में निश्चल बैठी रहती है। उसकी यह दशा देखकर राज-परिवार के परिजन घबरा गये, पर समझ न सके कि एकाएक उसके आचरण में इतना अंतर क्यों आ गया ? रत्नवती उसकी अतिप्रिय होने के कारण सर्वदा उसके पास ही रहती थी। उसे विचार करते-करते ध्यान में पाया कि, अरे ! कुमार कनकशेखर का नाम सुनने के बाद ही एकाएक विमलानना की ऐसी स्थिति हुई है, अतः यह निश्चित है कि कनकशेखर ने मेरी इस बहिन का मन चुराया है । इसलिये अवसर देखकर पिताजी नन्दराजा को इस विषय में बता देना चाहिये. जिससे इसके चित्त को चुराने वाले को पकड़ कर इसके साथ बाँध दिया जाय । यह सोचकर उसने सब बात नन्दराजा को बताई। पिताजी ने सोचा
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