Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ३ : अप्रमाद यंत्र : मनीषी
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निकल जायेंगे । रौद्र ध्यान में मरकर वह बाल नरक में जायेगा । वहाँ से निकल कर अनेक बार कुयोनियों में जन्म लेगा और पुनः-पुनः मर कर नरक में अनन्त बार जायेगा । इसी प्रकार अत्यन्त अधम अवस्था में संसार चक्र में भटकता रहेगा और अनेक प्रकार के दुःखों को विचित्र परम्परा को तीव्रता से सहन करता रहेगा।
१४. अप्रमाद यंत्र : मनीषी
[प्राचार्य प्रबोधनरति ने जब बाल के चरित्र और भविष्य का वर्णन किया और उसके कारण बताये तब शत्रुमर्दन राजा के मन में अनेक प्रश्न उठे। इसी प्रसंग में निजविलसित उद्यान में राजा, आचार्य और मन्त्री के मध्य जो प्रश्नोत्तर हुए, वे विशेष ध्यान योग्य हैं ।]
शत्रुमर्दन -भगवन् ! अकुशलमाला माता और स्पर्शन मित्र तो बहुत भयंकर हैं । बाल को हुए दुःखों और होने वाले अन्त का कारण भी यही दोनों हैं ।
आचार्य -राजन् ! इसमें कहने को क्या शेष रह गया है। इन्होंने तो दारुण भय करता को सीमा का भो उल्लंघन कर दिया है।
सूबुद्धि-भगवन् ! अकुशलमाला और स्पर्शन केवल बाल पर ही अपना प्रभाव चलाते हैं या अन्य प्राणियों पर भी उनका प्रभाव चलता है ?
आचार्य—महामंत्रिन् ! इन दोनों का प्रभाव सब प्राणियों पर चलता है। अन्तर इतना ही है कि इन दोनों का बाल पर इतना अधिक प्रभाव है कि उनका स्वरूप स्पष्टतः झलक आता है । परमार्थ से तो कर्मबन्धन से युक्त समस्त संसारी प्राणियों पर इनका प्रभाव रहता ही है; क्योंकि अकुशलमाला योगिनी है और स्पर्शन योगिराज है । वे दोनों योगशक्ति से युक्त हैं । कभी दृश्य रूपवाले बन जाना और कभी अदृश्य हो जाना योगशक्ति सम्पन्न प्राणी ही कर सकते हैं।
शत्रुमर्दन-भगवन् ! क्या हम देख सकें इस प्रकार का उनका प्रभाव चल सकता है ? क्या हम पर भी उनका प्रभाव चल सकता है ?
प्राचार्य-हाँ, न केवल तुम पर भी उनका प्रभाव चल सकता है अपितु चल रहा है।
यह सुनकर शत्रुमर्दन राजा ने मंत्री से कहा- मन्त्रिन् ! जब तक इन दोनों पापियों का * मर्दन नहीं किया, उन्हें नहीं हराया, नष्ट नहीं किया तब तक मेरा * पृष्ठ २१३
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