Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ३ : शत्रुमर्दन आदि का प्रान्तरिक आह्लाद २६७ प्रभाव प्रकट करने लगी । उस समय मनीषी का मन अत्यन्त आह्लादित हुआ और संसार में साधारण मनुष्यों को अप्राप्त आत्मिक तेज और बाह्य लक्ष्मी को प्राप्त कर तथा राजा के सामन्तों, मन्त्रियों और राजलोक से परिवृत मनीषी अधिक शोभायमान लगने लगा । सुबुद्धि मन्त्री द्वारा स्तूयमान, मध्यमबुद्धि के साथ हाथी पर बैठा हुआ मनीषी नगर क द्वार पर पहुँचा। [८-१०] मनीषी का नगर प्रवेश
नगरवासियों ने सम्पूर्ण नगर में उन्नत ध्वजा पताकाएँ बांधी, दुकान विशेष रूप से सजाई और मुख्य मार्गों की सफाई करवाकर पानी छींटकर सुन्दर बनाया। नगर का शृंगार कर, उज्ज्वल वस्त्र पहन कर नगर वासी मनीषी को लेने के लिये हर्ष पूर्वक सामने आये । तोषपूरित हृदय से नागरिक जनों ने मनीषी को * नगर में प्रवेश कराया । सब लोग मनीषी का यशोगान करने लगे मनीषी का जीवन वास्तव में धन्य है, कृतकृत्य है, भाग्यशाली है, महात्मा है, मनुष्यों में उत्तम है, इसका जन्म सचमुच में सफल हुआ है, इसने पृथ्वी को भी शोभायमान/प्रकाशित किया है । इसके जैसे महापुरुष का जन्म हमारे नगर में हुआ, अत: हम नगरवासी भी वास्तव में भाग्यशाली हैं, क्योकि भाग्यहीन प्राणी कभी रत्नज से न तो सम्बन्धित ही हो सकते हैं और न उन्हें रत्नपुञ्ज की प्राप्ति ही हो सकती है । [११-१४] सभा भवन में प्रवेश
अपने देव समान रूप से स्त्रियों के नेत्रों को आह्लादित करते हुए, द्रव्याधियों को प्रचुर दान देते हुए, स्वयं के विशुद्ध धर्मानुष्ठान से प्राणियों को विशुद्ध धर्म में प्रेरित करते हुए, जनसमूह को आनन्दित करते हुए मनीषी की शोभा यात्रा सारे नगर में निकली। जनसमूह के बीच घूमता हा मनीषी राजमन्दिर में पहुँचा। राजमन्दिर भी रत्नराशि से सजाया गया था, उसकी आभा से ऐसा लग रहा था मानो आकाश में इन्द्र धनुष तना हो । राजमन्दिर में प्रवेश करते ही राजपरिवार के समस्त लोगों ने तथा स्वयं शत्रुमर्दन राजा ने मनीषी का स्वागत किया और रसिक तरुणी ललनाओं ने अपनी चपल आंखों से उसे बधाया। राजमन्दिर में उस समय गीत-संगीत और नृत्य चल रहे थे जिससे वह इन्द्रभवन के समान सुशोभित हो रहा था । [१५-१८]
देवभवन में इन्द्र के समान निःशंक हृदय से सभा भवन में बैठकर कुमार ने सब को आह्लादित किया । पदार्थों पर रागादि भावों के विलीन हो जाने पर भी राजा की संतोष वृद्धि के लिये वह राज सभा से उठकर स्नानगृह में गया। वहाँ रानी मदनकन्दली ने गौरव एवं स्नेह पूर्वक अपने भतीजे की तरह उसके शरीर पर पीठी की । मृदु, मधुर पालाप करती हई अन्तः पुर की अन्य रानियों और दासियों ने जो स्नान सम्बन्धी समस्त कार्यों में प्रवीण थीं, मनीषी को चारों ओर से घेर लिया।
ॐ पृष्ठ २२०
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