Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
कर मैं पुनः-पुनः उसका निराकरण भी करता रहता हूँ तथापि निर्लज्ज भिक्षुक ब्राह्मण की भांति मेरे मन में एक प्रश्न पुनः-पुनः उभर-उभर कर पाता है । अब तुम ही मेरी इस शंका को दूर करो।
सुबुद्धि--वह कैसा विचार है, आप बताने की कृपा करें।
शत्रुमर्दन--सूनों । आज प्रातः हम सब जैसे ही प्रमोदशिखर मन्दिर में प्रविष्ट हुए कि तुरन्त मेरे मन के सारे द्वन्द्व स्वतः ही दूर हो गये। राज्य-कार्य की चिन्ता-पिशाचिका अदृश्य हो गई, मोह के सब जाल टूट गये हों ऐसा लगने लगा, विपरीत दुराग्रह रूपी भूत भाग गया, सम्पूर्ण शरीर पर अमृत-वृष्टि जैसी शान्ति हो गई और क्षण मात्र में ऐसा अनुभव होने लगा मानों हृदय सुखसागर में डूब गया हो। यह सब कुछ मैंने स्वयं अनुभव किया है। उसके पश्चात् त्रिभुवननायक आदिनाथ भगवान् को, प्राचार्यश्री को और मुनियों को नमस्कार किया तथा प्राचार्य का उपदेश सुना, उस समय प्राज प्रातः मुझे जो अनुपम अानन्द सुख का अनुभव हुमा, उसका वर्णन वाणी द्वारा होना सम्भव नहीं है । ऐसे अप्रतिम जैन मन्दिर में, प्रचित्य प्रभाव वाले गुरु महाराज के समक्ष, राग के विष को शमन करने वाले उनके वैराग्योत्पादक उपदेश के मध्य, शान्त चित्त वाले तपस्वियों और इतने बड़े जनसमुदाय के बीच उस अधम बाल को अत्यन्त नीच आचरण करने का अध्यवसाय कैसे हो गया ?
व्यक्ति भेद से विचित्र प्रकार का क्षेत्र-स्वभाव
सुबुद्धि-देव ! जैसा कि आपने कहा कि मंदिर में प्रवेश करते ही क्षणमात्र में आपको अपूर्व आनन्द का अनुभव हुआ, वह सत्य ही है । इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। क्योंकि भगवान् के मन्दिर का नाम ही प्रमोदशिखर है । मन्दिर ऐसे गुण-समूह का निमित्त है, अतः उसमें प्रवेश करने से ऐसे गुणों का आविर्भाव होना स्वाभाविक ही है । आपने पूछा कि ऐसे संयोगों के होते हए भी बाल के मन में ऐसे तुच्छ अध्यवसायों का आविर्भाव क्यों हा? इसका कारण तो प्राचार्यश्री ने आपको पहले ही बता दिया था। उसका नाम ही बाल है। नाम पर विचार करने से ही संदेह दूर हो जाता है । अतः इस में भी कोई विस्मयकारिता नहीं है; क्योंकि पाप को रोकने की सभी सामग्री होने पर भी बाल जीव पाप का आचरण करते हैं, यह बाल प्रकृति का स्वभाव है । पुनः प्राचार्यश्री के उपदेश पर विचार करने से यह भी समझ में प्राता है कि प्राणो को द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव की अपेक्षा से शुभ या अशुभ परिणामों का आविर्भाव होता है। प्राणी के अध्यवसायों में इन पांचों निमित्तों का योग रहता है । बाल को उस समय जो अध्यवसाय हुए वे क्षेत्र के कारण से हुए, ऐसा लगता है । * पृष्ठ २२४
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