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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
का प्रतिपादन किया, क्या वे अपने स्वभाव से ही ऐसे होते हैं या किसी और कारण से वे भिन्न-भिन्न प्रकार के बन जाते हैं ? कृपा कर स्पष्ट करें।
प्राचार्य --महामन्त्रिन् ! प्राणियों का भिन्न-भिन्न प्रकार का स्वरूप स्वाभाविक नहीं है वह विभिन्न कारणों से बन जाता है। इनमें से उत्कृष्टतम और उत्तम प्राणियों में वस्तुतः किसी भी प्रकार का भेद नहीं है, केवल इतना ही अन्तर है कि उत्कृष्टतम प्राणियों ने अपना कार्य सिद्ध कर लिया है जब कि उत्तम प्राणी मनुष्य भव को पाकर, संसार के स्वरूप को समझकर, मोक्षमार्ग को पहचान कर उस ओर आचरण करते हैं और कर्मजाल को काटकर, स्पर्शनेन्द्रिय का त्याग कर मोक्ष को प्राप्त करते हैं । उस अवस्था में उत्कृष्ट भी उत्कृष्टतम बन जाते हैं। फिर वे मोक्ष में सिद्ध-रूप में अवस्थित हो जाते हैं । अवस्था की दृष्टि से उत्कृष्टतम विभाग के प्राणियों का कोई जनक नहीं होता, अर्थात् इन प्राणियों के कोई माता-पिता नहीं होते । शेष उत्तम, मध्यम, और जघन्य प्राणी संसार में रहते हैं
और स्वकीय भिन्न-भिन्न विचित्र कर्मों के फल स्वरूप वैसे-वैसे बनते हैं, अतः कर्मविलास राजा उन्हें उत्पन्न करने वाला उनका पिता माना जाता है।
___कर्म तीन प्रकार के होते हैं-शुभ, अशुभ और सामान्य । इसमें जो कर्मपद्धति शुभ होने से सुन्दर लगे वह शुभसुन्दरी रूपी माता उत्तम प्राणियों को जन्म देने वाली मानी जाती है । जो कर्मपद्धति अशुभ होने से असुन्दर लगे वह अकुशलमाला रुपी माता जघन्य प्राणियों को जन्म देने वाली मानी जाती है। जो कर्मपर शुभ-अशुभ मिश्रित होने से सामान्य लगे वह सामान्यरूपा माता मध्यम वर्ग के प्राणियों को जन्म देने वाली मानी जाती है।
उपरोक्त वर्णन सुनकर मनीषी ने विचार किया कि, अहो ! इन आचार्यश्री ने तो उत्तम, मध्यम और जघन्य पुरुषों को न केवल गुरणों से हो हमारे समान बताया है अपितु चरित्र से भी हमारे समान बताया है, जिससे प्राचार्य की बात हम तीनों भाइयों पर लागू होती है। इन महात्मा ने माता-पिता सम्बन्धी जो वर्णन किया है वह भी हम पर लागू होता है, अतः तीनों वर्गों के पुरुष हम तीनों भाई हैं यह तो निश्चित ही है।
स्पर्शन ने पहले मुझे कहा था कि भजन्तु जब उसका तिरस्कार कर निर्वृत्ति नगर में चला गया तब उसके कोई माता-पिता हों ऐसा उसने कुछ नहीं कहा था। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि भवजन्तु उत्कृष्टतम विभाग का पुरुष था। हम तीनों भाइयों के पिता कर्मविलास राजा हैं और प्राचार्य निर्दिष्ट हमारी माताएँ भी अलग-अलग हैं, अतएव यह ज्वलन्त सत्य है कि * बाल जधन्यवर्ग का, मध्यमबुद्धि मध्यमवर्ग का और मैं स्वयं उत्तम वर्ग का पुरुष हैं।
मनीषी जब उपरोक्त विचार कर रहा था तभी सुबुद्धि मन्त्री ने प्राचार्यदेव से दूसरा प्रश्न किया-भगवन् ! आपने जिन चार प्रकार के प्राणियों का वर्णन * पृष्ठ २०८
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