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प्रस्ताव ३ बाल के अधमाचरण पर विचार
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मनुष्य जब अधर्म पर उतर आता है तब अन्धे की भांति कार्य-अकार्य का कुछ भो विचार नहीं करता, जैसे उसे भूत लगा हो वैसे वह अन्धकार में कूद पड़ता है । वैसे ही हजारों लोगों, राजा, आचार्य श्रौर बड़े भाइयों के देखते हुए, जनसमुदाय को उपदेश श्रवण में विघ्न डालते हुए वह बाल एकाएक मदनकन्दली पर मन और आँखों को निश्चल कर लोगों को ठोकरें मारते हुए मदनकन्दली की तरफ दौड़ा । उसकी इस कुचेष्टा को देखकर उपस्थित जन समुदाय में से लोग चिल्लाने लगे, 'अरे ! यह क्या ? यह कौन पापी है जो ऐसे पवित्र स्थान में ऐसा प्रथम आचरण कर रहा है ?' पर बाल उस कोलाहल की प्रोर ध्यान दिये बिना ही मदनकन्दली रानी के निकट पहुँच गया । 'यह कौन है ?' शीघ्रता से शत्रुमर्दन ने उसे देखा और उसकी विकारयुक्त दृष्टि से उसके नीच भावों को समझ गया तथा 'अरे यह तो वही अधम पापी बाल है' पहचान गया राजा की प्राँखें क्रोध से लाल हो गई, मुखाकृति भयंकर हो उठी और उसने जोर से उसे ललकारा । बाल पहले भी ऐसे अधम कार्यों से मरणान्तक कष्ट भुगत चुका था, जिससे वह अत्यन्त भयभीत हुआ, उसका कामज्वर उतरा, शरीर में कुछ चेतना, मुख पर दीनता के भाव उभरे और वह उलटे मुँह भागा। पर, उसके जोड़ ढीले पड़ जाने से, शरीर शिथिल हो जाने से, दौड़ने का वेग टूट जाने से कांपने लगा और वह थोड़ी दूर जाकर जमीन पर गिर पड़ा । उस समय स्पर्शन उसके शरीर से निकल कर आचार्यश्री के डर से दूर जाकर बैठ गया और उसकी प्रतीक्षा करने लगा । जन-समुदाय का कोलाहल कुछ शान्त हुआ । बाल के इस अधम आचरण से उसके दोनों भाई भी बहुत लज्जित हुए । राजा सोचने लगा कि, ऐसे निर्लज्ज अधम प्रारणी पर क्या क्रोध करें ? ऐसा सोचकर राजा भी शान्त हो गया ।
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बाल के अधमाचरण पर विचारणा
शत्रुमर्दन राजा ने बाल के सम्बन्ध में प्राचार्य श्री से पूछा - भगवन् ! इस पुरुष का चरित्र तो बहुत ही अद्भुत लगता है, उस पर विचार करना भी अशक्य है । जिन्हें संसार के अनेक मनुष्यों के चरित्रों का अनुभव है, ऐसे विद्वानों को भी इस पुरुष के श्राचरण की सत्यता को मानने में आनाकानी हो ऐसा निकृष्ट श्राचरण इस पुरुष का है । इसने पूर्व काल में कैसा प्राचरण किया और अभी उसके मन में कैसे विचार चल रहे हैं, वह प्रापश्री तो निर्मल ज्ञान दृष्टि से प्रत्यक्ष जान सकते हैं, क्योंकि श्राप त्रैलोक्य में होने वाले समस्त भावों को हथेली पर रखे प्रांवले की तरह देख सकते हैं । तथापि मुझे यह जानने का कौतुक है कि इसका पहले का आचरण तो कर्मवैचित्र्य के कारण सत्त्ववाले प्राणियों में सम्भव है, पर अभी-अभी इसने जो कुछ किया वह तो प्रत्यक्ष सत्य होने पर भी इन्द्रजाल के समान विश्वास योग्य नहीं है । रागदि सर्पों का संहार करने वाले गरुड के समान श्रापके समक्ष भी अति अधम
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