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प्रस्ताव ३ : चार प्रकार के पुरुष
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महाराज से पूछा -भगवन् ! सुख की इच्छा करने वाले प्राणी को इस संसार में सर्व संपत्ति को प्राप्त कराने वाली कौनसो वस्तु को प्रयत्नपूर्वक प्राप्त करना चाहिये ? [ ५१-५२]
धर्म की उपादेयता
आचार्य - राजन् ! इस संसार में प्राणी को प्रयत्नपूर्वक सर्वज्ञ प्ररूपित धर्म का आचरण करना चाहिये, क्योंकि धर्म ही समस्त पुरुषार्थों को प्राप्त कराने वाला होने से विशेष रूप से ग्रहणीय है । धर्म प्राणी को अनन्त सुख के भण्डार मोक्ष में ले जाता है और जब तक प्राणी इस संसार में रहता है तब तक आनुषंगिक रूप से उसे सुख राशि भी प्राप्त कराता है । [५३-५४]
शत्रुमर्दन - यदि ऐसा ही है, तब समस्त सुखों के साधनरूप धर्म को सब लोग आचरण में क्यों नहीं लेते? जानते हुए भी और सुख प्राप्त करने की इच्छा रखते हुए भी क्लेशों को क्यों प्राप्त करते हैं ? । [ ५५ ]
इन्द्रियों का माहात्म्य
आचार्य -- राजन् ! सुख प्राप्त करने की इच्छा तो शीघ्र ही हो जाती है, पर धर्म की साधना जल्दी नहीं हो सकतो; क्योंकि जो प्राणो अपनी पांचों इन्द्रियों को जीत लेता है वही धर्म की साधना कर सकता है । अनादि भवाटवी में परिभ्रमरण करते हुए ये इन्द्रियाँ बहुत बलवान बन जाती हैं, अतः दुर्बुद्धि वाले प्राणी इन्हें सरलता से नहीं जीत सकते । इसलिये ऐसे प्रारणी केवल सुख प्राप्त करने की इच्छा तो करते हैं पर उसको प्राप्त कराने वाले धर्म का आचरण नहीं करते, प्रत्युत सुखकारक धम से दूर भागते हैं । [ ५६-५८ [
शत्रुमर्दन - सुख प्राप्ति की इच्छा वाले प्राणी जिन इन्द्रियों को वशीभूत करने में असमर्थ होकर उन पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते और धर्म से दूर भागते हैं वे इन्द्रियाँ कौन-कौन सी हैं, उनका स्वरूप क्या हैं और वे क्यों प्रति दुर्जेय है ? मैं यह सब कुछ तत्त्वतः जानना चाहता हूँ, कृपा कर मुझे समझाइये । [५९-६०] आचार्य - हे राजेन्द्र ! स्पर्श, जीभ, नाक, आँख और कान ये पाँच इन्द्रियाँ कही जाती हैं । कोमल स्पर्श से प्रानन्द और कठोर स्पर्श से दुःख, सुस्वादु भोजन से जिह्वा का आनन्द और कडुवे भोजन को थूक देने की इच्छा, सुगन्ध से मन प्रसन्न और दुर्गन्ध से नाक बंद करने की इच्छा, सुन्दर वस्तु और प्राणी को देखने से मन प्रसन्न तथा असुन्दरता से दुःखो, मधुर संगीत से प्रसन्नता और ककर्श ध्वनि से विषाद आदि इन्द्रियों के विषय हैं । इन पाँचों इद्रियों को इष्ट विषय की प्राप्ति से आनन्द और अनिष्ट की प्राप्ति से द्वेष होता है ।
इन्द्रियाँ दुर्जेय क्यों हैं ? अब इस विषय का विवेचन कर रहा हूँ । ध्यानपूर्व सुनो और धारण करो । कितने ही मनुष्य इतने बलवान होते हैं कि लड़ाई में हजारों योद्धाओं से अकेले झझ लेते हैं और मदोन्मत्त हाथियों को भी वश में कर
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