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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
मनीषी ने मध्यमवुद्धि से कहा-भाई मध्यमबुद्धि ! यह बाल तो अपने नाम के अनुसार मूर्ख ही है । अपना सच्चा आत्महित कहाँ है, यह नाम मात्र भी नहीं समझता । फिर इसके पीछे पड़े रहकर क्या तेरा भी विचार विनाश को प्राप्त होने का है ?
मध्यमबुद्धि-भाई मनीषी ! तूने मुझे वस्तुतः उचित शिक्षा दी है, इसमें तनिक भी शंका नहीं है । यह बाल जब तेरा सच्चा परामर्श भी नहीं मानता तब इसके साथ सम्बन्ध रखना मेरे लिये व्यर्थ है । बाल के साथ में अभी जो घटना घटो है वह बहुत ही लज्जाजनक है। क्या पिताजी को अभी तक इस बात की खबर नहीं लगी होगी ?
मनीषी-अरे ! पिताजी ही नहीं, पूरा नगर इस लज्जाजन्य घटना को जान गया है । भाई ! सूर्य के प्रकाश को क्या किसी कपड़े से ढंक कर बन्द किया जा सकता है ?
मध्यमबुद्धि- इस बात की सब मनुष्यों को कैसे खबर लग गई ?
मनीषी----भाई ! कामदेव के मन्दिर में जो घटना घटो थी वह तो बहुत से लोगों के सामने ही घटी थी । उस रात में जब विद्याधर बाल को उड़ाकर ले गया, उस समय तुमने 'मैं आया, मैं आया' करके जोर से आवाजें लगाई थी, तब बहुत से मनुष्य नींद में से उठ गये थे और उन्होंने ही यह सब घटना नगर में फैलाई है। इस
मध्यमबुद्धि सोचने लगा कि, अरे ! बाल चाहे जैसा भी हो, अपना भाई है, इसलिये वह तो यह सब वृत्तान्त गुप्त रखता था पर यह सब घटना तो अत्यधिक प्रकाश में आ गई लगती है। कितना भी गुप्त रूप से किया हुआ काम भो, विशेषकर पाप तो तुरन्त ही प्रसिद्ध हो जाता है। दुर्बुद्धि लोग अपने पापाचरण को छुपाने का प्रयत्न करते हैं, पर वास्तव में वह व्यर्थ है। ऐसा प्रय न करना ही मोह-विलसित अधिकता को ही सिद्ध करता है। अपने मन में ऐसा सोचते हुए मध्यमबुद्धि बोला-भाई मनीषी ! यह वृत्तान्त सुनकर तूने क्या सोचा ? पिताजो ने क्या सोचा? माताजी को कैसा लगा ? और नगरवासियों ने क्या विचार किया ? यह सब मैं तुझ से सुनना चाहता हूँ।
__ मनीषी--'भाई मध्यमबुद्धि ! सून, सज्जन प्राणी को दुर्गुणी प्राणी के प्रति उपेक्षा रखनी चाहिये, इस भावना से मैंने बाल के प्रति मध्यस्थ भाव रखा । क्लेश पाते प्राणी पर सज्जन पुरुषों को दया रखनी चाहिये, इस विचार से मुझे तुझ पर महती करुणा आई । पापी-मित्र (स्पर्शन) की संगति से उत्पन्न होने वाली अनेक प्रकार की पीडाओं से मैं मुक्त रहा, इस विचार से मुझे अपनी आत्मा पर अधिक श्रद्धा (पूर्ण विश्वास) हुई। महात्मागण गुणों पर और गुणी प्राणियों पर प्रमोद (विशेष कृपा) वाले होते हैं, इस विचार से पूण्यशाली भवजन्तु द्वारा समस्त अनर्थों के मूल इस पापी-मित्र स्पर्शन को दूर भगाये जाने पर मुझे विशेष प्रमोद
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