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प्रस्ताव ३ : बाल को दुरवस्था
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बाल पर बीती गत रात की घटना सुन ली थी। बाल पर उसे अभी भी थोड़ा स्नेह था अतः उसे कुछ खेद हुआ और वह सोचने लगा कि, 'हा ! बाल को इतना अधिक दु:ख क्यों हुआ ?' गहन विचार करने पर उसका मन प्रमुदित हुआ। वह सोचने लगा कि, अहो ! देखो, मनीषी के वचन के अनुसार करने और न करने का फल इस भव में ही प्रत्यक्ष दिखाई देता है जो विचारणीय है। उसके उपदेशानुसार प्रवृत्तिःकरने पर मुझे किञ्चित् भी दुःख-क्लेश नहीं हुआ और न मेरा अपयश ही फैला । पहिले जब मैंने उसकी बात नहीं मानकर विपरीत आचरण किया था तो क्लेश भी पाया और अपयश भी मिला था ; बाल तो सर्वदा ही मनीषी के वचनों से विपरीत ही चलता है, इसलिये उस पर अनेक प्रकार के अत्यधिक दुःख पड़ते हैं, अपयश का ढोल बजता है और अन्त में मृत्यु भी हो तो क्या बड़ी बात हैं ! उस समय सचमुच ही मुझे मनीषी के वचनों पर प्रीति हुई और मैंने उसके अनुसार चलने का निश्चय किया, अतः मैं वास्तव में भाग्यशालो हूँ । सज्जन पुरुषों ने कहा भी है कि
नैवाभव्यो भवत्यत्र, सतां वचनकारकः ।
पक्तिः काङ् कटुके नैव, जाता यत्नशतैरपि ।
जो प्राणी अभव्य है, जिसका भविष्य में सुधार नहीं हो सकता, ऐसा प्राणी सज्जन पुरुषों के वचन के अनुसार कभी भी नहीं चल सकता । सैकड़ों प्रयत्न करने पर भी कौवा कभी काँव-काँव छोड़कर मीठी बोली नहीं बोल सकता।
इस प्रकार विचार करते हुए बाल के प्रति उसके मन में जो थोडा स्नेह बचा था वह भी समाप्त हो गया, इससे उसके मन को शांति प्राप्ति हुई । मन प्रमदित हो जाने से इसी प्रकार के विचारों में उसका वह पूरा दिन व्यतीत हो गया। रात में जब बाल राजमहल में पहुँचा तब लोकाचार निभाने के लिये उससे सहज रूप से बात की और उसके हालचाल पूछे, तब बाल ने उसकी जो-जो विडम्बनाएँ हुई थीं वे सब खेद पूर्वक कह सुनाई। उसकी बातें सुनकर उसके व्यवहार से उसके प्रति अनादर होने से मध्यमबुद्धि ने सोचा कि ऐसे प्राणी को शिक्षा देना निरर्थक है। शिष्टाचार के कारण उसने ऊपरी तौर पर थोड़ासा शोक प्रकट किया । बाल के सभी अंग चूर-चूर हो गये थे और मन दुःख से आकुल-व्याकुल हो गया था। फिर उसे राज्य की ओर से भी बहुत भय था, अतः वह छिपकर महल में ही पड़ा रहा । बिल्कुल बाहर न निकल कर निरन्तर प्रच्छन्न रूप से महल में ही रहने लगा। इसी स्थिति में उसका बहुत-सा समय व्यतीत हो गया। [२-७]
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