Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ३ : मदनकन्दली
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बाल और कर्मविलास
कर्मविलास राजा ने जब अपने परिजनों से यह सब घटना सुनी तब अपने मन में विचार किया कि, बाल को यह क्या हो गया है ? उसके ऐसे आचरण से अब मुझे उसके प्रतिकूल होना पड़ेगा, तब उसका क्या हाल होगा? यह तो अभी इन लोगों को ज्ञात ही नहीं हैं। देवता का अपमान करने वाले ऐसे दुराचारी पुत्र को तो कठोर दण्ड मिलना ही चाहिये । यह सोचकर कर्मविलास राजा ने अपने परिवार से कहा-अरे ! ऐसे अविनयी तूफानी छोकरे की अब क्या चिन्ता करें ? यह तो अब हमारे अनुशासन के योग्य भी नहीं रहा । [ मैं आज्ञा देता हूँ कि] कोई भी व्यक्ति अब इसके साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखे । राजा की प्राज्ञा को सबने शिरोधार्य किया। बाल का अन्तस्ताप : मध्यमबुद्धि का परामर्श
____ मध्यमबुद्धि ने बालकुमार से पूछा-भाई ! अब तो तेरे शरीर में कोई दर्द नहीं है न ?
बाल-शरीर में तो दर्द नहीं है, पर मेरे मन में सन्ताप हो रहा है और वह बढता जा रहा है ।
मध्यमबुद्धि-पर, इस मनस्ताप का कारण क्या है ? क्या तू उसे जानता है ?
__ कामदेव सर्वदा वक्र होता है और उसकी प्रवृत्तियाँ भी विपरीत होती हैं, अतः बाल ने सीधा उत्तर न देते हुए कहा- मैं तो नहीं जानता, पर कामदेव के मन्दिर में शयन कक्ष के बाहर जब तू खड़ा था तब क्या तूने किसी स्त्री को कक्ष में प्रवेश करते या बाहर निकलते देखा था ?
मध्यमबुद्धि - हाँ, एक स्त्री को देखा तो था, पर उससे तुझे क्या ? बाल - वह कौन थी ? उसे तू पहचानता भी होगा ?
मध्यमबुद्धि - हाँ, अच्छी तरह जानता हूँ। वह शत्रुमर्दन की रानी मदनकन्दली थी।
मध्यमबुद्धि का उत्तर सूनकर बाल चिन्ता में पड़ गया और गहरे निःश्वास छोड़ते हए सोचने लगा कि ऐसी स्त्री मुझे कैसे मिल सकती है ? व्यवहारकुशल मध्यमबुद्धि समझ गया कि यह भाई मदनकन्दली पर आसक्त हो गया लगता है । पुनः मध्यमबुद्धि ने विचार किया कि यह मदनकन्दलो अतिशय सुन्दर और रूपवती होने से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है और लोगों के मन में अपने प्रति अभिलाषा उत्पन्न करती है। कक्ष का द्वार छोटा होने से जब वह
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