Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ३ : मदनकन्दली
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वन में अनेक प्रकार के विकसित सुन्दर पुष्प-समूहों पर गुजायमान भौंरों की गुजार से वन उद्यान अति सुन्दर हो गये। पति के साथ विचरण करने वाली प्रेममग्न पत्नी के हृदय को आनन्द देने वाली कोयल की मीठी कुहुक से वन प्रदेश गूज उठा। विकसित केशू के फूलों के अग्रभाग ऐसे लाल हो रहे थे मानो वियोग से दुःखी स्त्री के शरीर का मांस-पिण्ड हो। आम्र-मंजरी चारों दिशाओं को सुगंधित करती हुई वसन्तराज के साथ प्रमुदित होकर धूलि-क्रीडा कर रही थी । देवता और किन्नरों के युगल वन में प्राकर अनेक प्रकार की क्रीडाएँ कर रहे थे जिससे मनुष्य-लोक का वन स्वर्ग के नन्दनवन की रमणीयता को प्राप्त कर रहा था। वल्लरियाँ उत्कर्ष को प्राप्त हो रही थीं। घर-घर और वृक्षों की शाखामों में झले पड़े थे और कामदेव को उद्दीपित करने वाली सुगंधित मलय पवन मन्द-मन्द चल रही थी। [४२-४७] लीलाधर उद्यान
ऐसे मन्मथकालीन वसन्त ऋतु में आनन्दित होकर मध्यमबुद्धि को साथ लेकर बाल क्रीडा के लिये एक दिन बाहर निकल पड़ा। जब वह बाहर निकला तब योग-शक्ति से उसके शरीर में प्रविष्ट उसकी माता और उसका मित्र स्पर्शन भी सूक्ष्म रूप से उसके शरीर में ही विद्यमान थे। ऐसे लुभावने समय में कुमार मध्यमबुद्धि के साथ नगर के बाहर स्थित नन्दनवन के समान लीलाधर उद्यान में पहुँचा। इस उद्यान के मध्य में एक बड़ा मन्दिर था, जिसके ऊँचे श्वेत शिखर मन्दिर के दर्शनार्थी की आँखों को आह्लादित करते थे । अनेक विशाल तोरणों से मन्दिर शोभित हो रहा था । मन्दिर में लोगों ने स्त्रियों के हृदय को आह्लादित करने वाले रतिपति कामदेव की प्रतिमा प्रतिष्ठित कर रखी थी। इस देवता की विशिष्ट पूजा प्रत्येक त्रयोदशी को होती थी। आज भी त्रयोदशी होने से कुमारिकायें सून्दर पति की प्राप्ति के लिये, विवाहित स्त्रियाँ सौभाग्य की वृद्धि के लिये और कुछ स्त्रियाँ अपने पति के प्रेम को प्राप्त करने के लिये पूजा करने या रही थीं। मोहान्ध कामी पुरुष अपनी पसन्द की स्त्री के साथ सम्बन्ध स्थापित करने का अवसर प्राप्त करने के लालच से पूजा करने के बहाने मन्दिर में आ रहे थे। [४८-५४] कामदेव को शय्या पर बाल
कामदेव के मन्दिर में आज बहुत कोलाहल हो रहा था जिसे सुनकर कौतुक देखने की इच्छा से बालकुमार ने अपने भाई मध्यमबुद्धि के साथ मन्दिर में प्रवेश किया। वहाँ उन्होंने देखा कि रतिनाथ कामदेव को कई भक्तिपूर्वक प्रणाम कर रहे थे, कई प्रयत्न पूर्वक पूजा कर रहे थे और कई गुरण-कीर्ति गाकर स्तुति कर रहे थे । बाल ने मन्दिर की प्रदक्षिणा देते हुए देव मन्दिर के निकट ही गुप्त स्थान पर वासभवन (शयनकक्ष) देखा। रतिनाथदेव का वह वासभवन (कक्ष)
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