Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
देखने में अत्यन्त रमणीय, मन्द-मन्द प्रकाश से युक्त और कौतुक उत्पन्न करने वाला था। इसमें क्या होगा? यह देखने के लिए मध्यमबुद्धि को द्वार के पास खड़ा कर बाल सहसा ही उस कक्ष के अन्दर चला गया। वहाँ उसने एक अति विशाल शय्या देखी जिस पर कोमल बिस्तर-तकिये तथा निर्मल स्वच्छ एवं कोमल चादर बिछी हुई थी। इस शय्या के मध्य में रति के साथ कामदेव सो रहे थे। देवताओं को भी अप्राप्य उस कोमल सुन्दर महाशय्या को बाल ने देखा । शयनकक्ष में प्रकाश अति मन्द था अत: यह क्या है जानने के कौतुक से शय्या को दोचार बार हाथ फिरा कर देखा तब उसे लगा कि यह कामदेव की शय्या होनी चाहिये। उस शय्या के कोमल स्पर्श के वशीभूत होकर वह सोचने लगा कि ऐसी कोमल शय्या अन्यत्र तो कहीं मिल ही नहीं सकती। उस समय उसके शरीर में स्थित उसकी माता और स्पर्शन की प्रेरणा से उसमें चपलता जागृत हुई। चापल्य दोष से ग्रस्त होकर वह सोचने लगा कि मैं इच्छानुसार इस शय्या पर सोकर इसका उपयोग करूं । उस समय उसे यह विचार नहीं आया कि इस शय्या में स्वयं कामदेव रति महादेवी के साथ सो रहे हैं। देव-शय्या पर सोने वाले को कितने दुःख उठाने पड़ते हैं इसका भी उसे विचार नहीं आया। बाल ने यह भी नहीं सोचा कि अन्य लोग यदि देख लेंगे या उन्हें पता लग गया तो मेरी कितनी हँसी होगी । द्वार पर उसकी राह देख रहा मध्यमबुद्धि उसकी हँसी करेगा। भविष्य में क्या होगा इसका तनिक भी विचार किये बिना मोह के वशीभूत होकर वह शय्या पर चढ गया
और उस पर सोकर कुचेष्टायें करने लगा। अपने अंगों को मरोड़ने लगा और उस विशाल शय्या के स्पर्श-सुख को प्राप्त कर वह सोचने लगा --- अहो ! इसका सुख ! इसका स्पर्श कितना आह्लादकारी है ! तथा उसके प्रति अपूर्व प्रीति वाला बनकर अपने आप को भाग्यशाली मानता हुआ वह शय्या पर लोट-पोट होने लगा। [५५-७१] मदनकन्दली का स्पर्श
[क्षितिप्रतिष्ठित नगर के अन्तरंग राज्य का राजा कर्मविलास था और वहीं बाल, मनीषी, मध्यमबुद्धि आदि कुमार भी रहते थे।] नगर के बहिरंग राज्य पर प्रख्यात महातेजस्वी शत्रुमर्दन नामक राजा राज्य करता था। उस राजा के उत्तम कुलोत्पन्न कमल के समान नेत्रों वाली प्राणों से भी अधिक प्रिय मदनकन्दली नामक रानी थी। वह महारानी अपने हाथ में पूजा की सामग्री लेकर अपने परिवार के साथ कामदेव को पूजा करने के लिये उस दिन मंदिर में आई थी। मंदिर के मध्य में स्थित कामदेव की पूजा कर वह भी शयनकक्ष की तरफ आई। उसे देखकर और स्त्री जानकर लज्जा और भय से बाल थोड़ी देर के लिये काष्ठ के समान निस्पन्द और स्थिर हो गया। * शयनकक्ष में प्रकाश अति मन्द था, शथ्या के मध्य में सोये * पृष्ठ १८२
* पृष्ठ १८३
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