Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव १ : पीठबन्ध
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होने से तथा रागादि भाव-रोगों का कारण होने से कमजचय रूप अजीणं को पैदा करता है। इन्हें ही कुत्सित अन्न (झूठन) समझे। महामोह से ग्रस्त जीव यह भी सोचता है:--"मैं अनेक स्त्रियों के साथ विवाह करूंगा। मेरी पत्नियाँ इतनी अधिक रूपवती होंगी कि जो अपने रूप से तीनों लोक की महिलाओं को पराजित कर सकेंगा, अपने सौभाग्य से कामदेव को भी आकर्षित कर सकेंगी, अपने हाव-भाव विलासों से मुनिजनों के हृदयों को चलायमान कर सकेंगी अपनी कलापों से बृहस्पति को भी हँसी ने उड़ा देंगी और अपनी विशिष्ट प्रतिभा से स्वयं को महापण्डित मानने वाले पण्डितों के चित्त को भी रिझाने में निपुण होंगी। ऐसी गुणवाली मनोरमा पत्नियों का मैं हृदयवल्लभ हो जाऊँगा। ये मेरी पत्नियाँ पर-पुरुष की गन्ध तक सहन नहीं कर सकगी, मेरी प्राज्ञा का कभी भी उल्लंघन नहीं करेंगी, मेरे मन को निरन्तर आह्लादित करेंगी, उन पर जब कृत्रिम क्रोध करूगा तो वे मुझे प्रसन्न करने का प्रयत्न करेंगो, मझे. मनावेंगी। अपनी कामवासना की पूर्ति के लिये वे मुझे हर तरह से चापलूसी कर प्रसन्न रखेगी, मेरी इगिताकार आदि चेष्टाओं (मनोभावों) को मुर्भ, बतावेंगी, विविध प्रकार के विब्बोकादि हावभावों द्वारा मेरे मन को अपनी ओर आकर्षित करेंगी, आपसी ईर्ष्या के का•ण एक दूसरे पर कटाक्ष (व्यंग्य) वाक्यों से अभिलाषा पूर्वक मभे. बारम्बार घायल करेंगी। इन्द्र के परिवार को भी मखौल में उड़ा देने वाला विनीत, दक्ष, शुद्ध चित्तवाला, सुन्दर वेषवाला, अवसर का जानकार, हृदयाह्लादक, मेरे ऊपर अनुराग रखने वाला, समस्त प्रकार के उपचार करने में कुशल, शरवीर उदार, सकल कला कौशलों में सम्पन्न, सेवा-भक्ति में प्रवीण ऐसा मेरा परिवार होगा । इन्द्र के राजमहलों की हँसो उड़ाने वाले ऐसे सात मंजिले मेरे अनेक राजमहल हांगे, जो अपने यशरूप चमक से चकाचौंध करने वाले, अमत के कारण शुभ्रता को धारण किये हुए मेरे चित्त जैसे निर्मल होंगे, जो बहत उत्तग (ऊचे) होने के कारण मिालय पर्वत का भ्रम पैदा करेंगे, जो विविध प्रकार के सुन्दर चित्रों से सुशोभित होंगे, अनेक चंदरवों से रमणीय होंगे, शालभंजिका आदि विविध प्रकार की पुत्तलिकाओं की रचनामों से शोभायमान होंगे, बड़ी-बड़ी शालाओं (हालों) से युक्त होंगे, जिसमें अनेक प्रकार के छोटे-मोटे कमरे होंगे, जिसमें अत्यन्त विशाल और विभिन्न प्रकार के सभा-मण्डप बने हए होंगे, जिसके चारों ओर परकोटा बना हुआ होगा । अर्थात् मेरा महल अत्यन्त आकर्षक और प्रानन्ददायक होगा। मेरे इस राजमहल में मर त, इन्द्रनील, महानील, कर्केतन, पद्मराग, वज्र, वैर्य, चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त,चूडामणि, पुष्पराग आदि विविध प्रकार के रत्न सर्वदा प्रकाश करेंगे। सोने के अम्बार से मेरा राजमहल पीले रंग के प्रकाश से प्रकाशित रहेगा । मेरे घर में चाँदो, धान्य आदि
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