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प्रस्ताव २ : असंव्यवहार नगर
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स्थान देखा ही नहीं है तब उस स्थान के स्वरूप को कैसे जान सकते हैं ? वहाँ अनुकूलता है या प्रतिकूलता; इसको भी कैसे जान सकते हैं ? अनादि काल से वे यहीं रहते हैं और इनको यहीं रहने में प्रानन्द प्राता है। अनादि काल से यहाँ रहते हुए इनका आपस में इतना स्नेह हो गया है कि वे एक दूसरे के वियोग की कामना भी नहीं करते । भाई ! देख, एक ही कमरे में रहने वाले सभी प्राणी परस्पर इतने प्रेम से रहते हैं कि एक साथ सांस लेते हैं, एक साथ सांस छोड़ते हैं, साथ में आहार लेते हैं, साथ में नीहार करते हैं, एक मरता है तो साथ में उसके सभी स्नेही मरते हैं, एक जीता है तो साथ में सब जीते हैं । इस प्रकार जब ये दूसरे स्थान के गुणों को नहीं जानते और परस्पर स्नेह-बन्धन से इतने जकड़े हुए हैं तब अपने आप दूसरे स्थान पर जाने का निर्णय कैसे ले सकते हैं ? अतः यहाँ से ले जाने के योग्य कौन लोग हैं ? इसका पता लगाने के लिये कोई दूसरा उपाय ढूँढना चाहिये।
उपर्युक्त कथन सुनकर सेनापति अत्यन्त अबोध सोच में पड़ गया कि अब क्या करना चाहिये । भवितव्यता
[इधर संसारी जीव अगृहीतसंवेता को उद्देश्य कर अपने विषय में जो वृत्तान्त कह रहा था उसे आगे बढ़ाते हुए उसने कहा :-]
बहिन अगहीतसंकेता ! मेरे भवितव्यता नामक पत्नी है। वास्तव में कहूँ तो यह साड़ी पहनी हुई भी स्त्री परिवेश में एक सुभट है। मैं तो नाम-मात्र के लिये उसका पति हूँ। सच पूछा जाय तो मेरे घर का और सब लोगों के घरों का सम्पूर्ण कर्त्तव्य तन्त्र तो यह अकेली ही चलाती है । उसमें अचिन्त्य शक्ति होने के कारण वह स्वाभिलषित कार्य को स्वतः ही पूर्ण करती है और किसी अन्य पुरुष की सहायता की इच्छा नहीं करती। अमुक कार्य स्व-पुरुष के लिये अनुकूल है या प्रतिकूल, इसका विचार नहीं करती, अवसर नहीं देखती । प्राणी पर दूसरी आपत्तियाँ आ पड़ी हैं, इसे भी नहीं देखती । बुद्धि-वैभव में बृहस्पति जैसा व्यक्ति भी उसे रोक नहीं सकता । पराक्रम में देवेन्द्र भी उसे पीछे नहीं हटा सकता । योगी भी उसका सामना करने का साहस नहीं जुटा सकते । अत्यन्त असम्भव कार्य को भी यह महादेवी हस्तगत के समान खेल ही खेल में शक्य बना देती है। सम्पूर्ण लोक के जिस प्राणी का प्रयोजन जब, जहाँ, जिस प्रकार करना हो उसे लक्ष्य में रखकर * प्रत्येक प्रयोजन को उस प्राणी के सम्बन्ध में उसी समय, उसी जगह, उसी प्रकार घटित करती है। ऐसा करते हुए उसे तीन लोक में कोई भी रोक नहीं सकता। [अर्थात् किस प्राणी के बारे में कौन सा कार्य कब करना, कितने समय तक करना, किस स्थान पर करना, कैसे करना आदि सब बातों की कुञ्जी मेरी पत्नी भवितव्यता के हाथ में है । उसे कोई रोक नहीं सकता] । देवताओं के राजा इन्द्र या मनुष्यों के राजा चक्रवर्ती से भी यदि कोई कहे कि भवितव्यता तुम्हारे अनुकूल है तो वे हृदय * पृष्ठ १२८
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