Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव : ३ नन्दिवर्धन और वैश्वानर
१६७
विदुर की सूचनायें
इधर एक दिन मेरे पिता पदम राजा ने राजवल्लभ विदुर नामक विश्वसनीय सेवक को बुलाकर कहा-विदुर ! कुमार नन्दिवर्धन को जब मैंने कलाचार्य के पास भेजा था तब उसे शिक्षा दी थी कि वह एकाग्रचित्त होकर मात्र कला-ग्रहण में ही अपना मन लगाये । मैंने उसे यह भी आदेश दिया था कि वह मुझ से मिलने भी नहीं आये (क्योंकि यहाँ आने से अभ्यास की एकाग्रता में विघ्न पड़ता है) । समय-समय पर मैं स्वयं आकर उससे मिल लूगा । पर, राज्य-कार्य में अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण मेरा वहाँ जाना नहीं हो सकेगा, अतः तुम प्रतिदिन स्वयं गुरुकुल जाकर उसके अभ्यास, स्वास्थ्य आदि का पता लगाकर मुझे सूचित करना । विदुर ने राजाज्ञा को मान्य किया।
मेरे पिता की आज्ञानुसार विदुर प्रतिदिन मेरे पास आने लगा। फलतः मेरे सहपाठी छात्रों को तथा कलाचार्य को मैं कितना क्षुब्ध करता था, सब को कितना त्रास देता था आदि व्यवहार उसने स्वयं देखा। मेरे पिता को यह सब बतलाने से आघात लगेगा ऐसा सोचकर कुछ दिन तो उन्हें कुछ नहीं बतलाया, पर प्रतिदिन मेरे त्रासदायक रूप को बढता देखकर एक दिन उसने पिताश्री को सब बता दिया। पिताश्री ने सब सुनकर विचार किया, 'यह विदुर कभी असत्य नहीं बोल सकता, पर कुमार भी तो ऐसा अयोग्य आचरण नहीं कर सकता ? अवश्य ही इसमें कुछ रहस्य है जो मेरी समझ में नहीं आ रहा है । विदुर के कथनानुसार यदि कुमार कलाचार्य को भी त्रास दे रहा हो तो उसे कला-शिक्षा ग्रहण करवाने से क्या लाभ ?' ऐसे विचारों से मेरे पिता के मन में दुःख हुआ और उन्हें चिन्ता होने लगी। फिर मेरे पिता ने दृढ़ निश्चय किया कि, 'इस विषय में स्वयं कलाचार्य को बुलाकर, उन्हीं से सब बात पूछकर निर्णय लेना उचित होगा । वास्तविकता जानने के बाद उसके निवारण के उपाय सोचकर उन्हें कार्य रूप में परिणित करने का प्रयत्न करूंगा।' इस प्रकार निश्चय कर उन्होंने विदुर को आज्ञा दी कि वह सम्मानपूर्वक कलाचार्य को बुला लाये। पद्मराजा और कलाचार्य का वार्तालाप
विदुर स्वयं जाकर कलाचार्य को बुला लाया । कलाचार्य को आते देखकर मेरे पिताजी उनके स्वागत में खड़े हुये, उन्हें प्रासन दिया, पूजा सत्कार किया और उनकी आज्ञा लेकर सिंहासन पर बैठे।
पद्म राजा-आर्य बुद्धिसमुद्र ! सभी कुमारों की शिक्षा ठीक से चल रही है न?
कलाचार्य–देव ! अापकी कृपा से सब की शिक्षा बहुत भली प्रकार चल रही है।
पद्म राजा- बहुत अच्छा ! कुमार नन्दिवर्धन ने भी कुछ कलाएँ ग्रहण की या नहीं ?
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