Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति भव-प्रपंच कथा
लीला मात्र के लिये भी देखती है, उसे विद्वान् लोग महात्मा की उपाधि देकर उसकी प्रशंसा करते हैं । मैं मानता हूँ कि जो भाग्यशाली प्राणी इस युवती - रत्न का आलिंगन प्राप्त करने में समर्थ होगा वह समस्त मनुष्य लोक का चक्रवर्ती होगा । उससे अधिक सुन्दर बाला इस संसार में और कोई नहीं है, अतः विद्वानों ने इसे सुन्दरियों में सर्वोत्तम कहा है । [१४]
शुक्लध्यान, केवलज्ञान और प्रशम ऋद्धि आदि चमत्कारिक अद्भुत भाव जो इस संसार में विद्यमान हैं वे सब क्षान्ति की कृपा से और उसकी प्राराघना से अनेक सज्जन प्राणियों ने अनेक बार प्राप्त किये हैं, कर रहे हैं और करेंगे । इसीलिये क्षान्ति को अनेक आश्चर्यों का जन्म स्थान कहा गया है । [५-६]
जैसे रत्न मंजूषा होती है वैसे ही यह गुरणरूपी रत्नों की मंजूषा है । दान, शील, तप, ज्ञान, कुल, रूप, पराक्रम, सत्य, शौच, सरलता, प्रलोभ, शक्ति, ऐश्वर्य आदि जितने भी श्रेष्ठ गुण इस लोक में हैं जो अमूल्य रत्न जैसे हैं, उन सब का आधार स्थान क्षान्ति ही है । क्षान्ति से रहित होने पर ये सारे गुरण आश्रयहीन होकर शोभा-रहित हो जाते हैं । इसीलिये विद्वानों ने क्षान्ति को गुणरत्नों की मंजूषा कहा है । [ ६-१० ]
क्षान्ति अर्थात् क्षभा ही महादान है, क्षान्ति ही महातप है, क्षान्ति ही महाज्ञान है और क्षान्ति ही महादम ( इन्द्रिय दमन ) है । क्षान्ति ही सर्वोत्तम शील है, क्षान्ति ही श्रेष्ठतम कुल है, क्षान्ति ही सर्वोच्च शक्ति है, क्षान्ति ही पराक्रम है, क्षान्ति ही सन्तोष है, क्षान्ति ही इन्द्रिय-निग्रह है, क्षान्ति ही महान शौच (पवित्रता) है, क्षान्ति ही महान दया है, क्षान्ति ही अद्वितीय रूप ( सौन्दर्य ) है, क्षान्ति ही सर्वश्रेष्ठ बल है, क्षान्ति ही सर्वोत्तम ऐश्वर्य है, और क्षान्ति को ही धैर्य कहते हैं । क्षान्ति ही परब्रह्म है, क्षान्ति को ही परम सत्य कहते हैं, क्षान्ति ही सचमुच में मुक्ति है, क्षान्ति ही सर्वार्थसाधिका है, क्षान्ति ही जगद्वन्द्या है, क्षान्ति ही जगत की हितकारिणी है, क्षान्ति ही जगत में ज्येष्ठ ( महान् ) है, क्षान्ति ही कल्याणदायिका है, क्षान्ति ही जगत्पूज्या है, क्षान्ति ही परम मंगल रूप है, क्षान्ति ही समस्त व्याधियों का हरण करने में श्रेष्ठतम औषध है और शत्रुओं का नाश करने वाली चतुरंगिणी सेना भी क्षान्ति ही है । अधिक क्या कहें ! क्षान्ति में ही सब कुछ प्रतिष्ठित ( समा जाता ) है । इसीलिये उसे मुनियों के मन को भी आकर्षित करने वाली कहा गया है । इस प्रकार की रूपवती सुन्दरी को देखकर ऐसा कौनसा सचेतन प्राणी होगा जो उसको अपने हृदय में धारण नहीं करेगा ? [११-१९]
क्षान्ति के साथ कुमार का पाणिग्रहरण करवाने का संकेत
जिस प्राणी के हृदय में यह कन्या अपनी लीला से बस जाती है उसका भाग्य बदल जाता है और वह स्वयं इस कन्या के समान रूप-गुरण वाला बन जाता
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