Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ३ : स्पर्शन - मूलशुद्धि
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ध्वनियों से चारों दिशाओं को गुंजायमान करते हुए अपरिमित संख्या में सैनिक एकत्रित होने लगे ।
विपाक से वार्ता
उपर्युक्त चतुरंगिणी सेना को देखकर मैंने सोचा कि, अरे ! यह सब क्या है ? क्या कोई बड़ा राजा विचरण के लिए बाहर निकला है ? यदि वह राजा है तो इस प्रकार सेना को साथ लेकर घूमने निकलने का क्या प्रयोजन है ? इस प्रकार मैं वितर्कों में झूल रहा था, उसी समय विषयाभिलाष मंत्री के सम्बन्धी विपाक को मैंने देखा । वह बहुत दारुण, अपने स्वरूप से संसार की विचित्रता बताने वाला, ज्ञानी मनुष्यों को भी उपदेश देने वाला, विवेकी प्राणियों में वैराग्य उत्पन्न करने वाला और अविवेकी प्राणियों के लिये पहेली के रूप में प्रतीत होता था । मैंने उस के साथ मीठी-चूँठी बातें करते हुए उससे पूछा- भाई ! यह राजा अभी जो प्रयाण कर रहा है उसका क्या प्रयोजन है ? मुझे जानने की उत्सुकता है, यदि आप जानते हों तो बतायें । विपाक बोला -आर्य ! तुम्हें प्रयोजन जानने का कौतूहल है तो मैं बताता हूँ, सुनो :--
एक बार सुगृहीतनामधेय रागकेसरी राजा ने अपने मंत्री विषयाभिलाष को बुलाकर कहा - 'आर्य ! अब तो तुम कुछ ऐसा करो कि सम्पूर्ण जगत मेरे वश में हो जाय ।' मन्त्री ने राजाज्ञा को शिरोधार्य किया । राजा का यह कार्य करने में कौन समर्थ है इस पर पूर्णरूपेण विचार कर मन्त्री ने मन में सोचा कि राजा का ऐसा कठिन कार्य करने में अत्यन्त चतुर मेरे स्पर्शन श्रादि पाँच विशेष पुरुषों के प्रतिरिक्त जिन पर मुझे पूरा विश्वास है, अन्य कोई समर्थ नहीं हो सकता । ये अपने अचिन्त्य पराक्रम से निपुणता के साथ इस कार्य को सम्पन्न कर देगें । अतएव इस सम्बन्ध में मुझे चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है । इस प्रकार सोचकर मन्त्री ने स्पर्शन आदि अपने पाँच मुख्य पुरुषों को अपने पास बुलाया । ये पाँचों पुरुष मन्त्री के अत्यधिक विश्वासपात्र, अनुरागी और समर्थक थे । उन्होंने पहले भी कई जगह अपना पराक्रम बताया था । बहुत समय तक मन्त्री के सच्चे सेवकों के समान उसकी विजयपताका को फहराया था । मनुष्य के हृदय को अपने प्रति आकर्षित करने में वे कुशल थे । शूरवीरों को निर्देश देने वाले, चंचल प्राणियों में अग्रगामी, अन्य प्राणियों को ठगने की कला में पारंगत, साहसिकों में अन्तिम श्वांस तक भी पीछे न रहने वाले ग्रौर बहुत कठिनाई से वश में आ सके ऐसे दुर्दान्त प्राणियों में उदाहरण रूप थे । अपने ऐसे क्रूर स्पर्शन आदि मुख्य पाँचों पुरुषों को मन्त्री ने इस जगत को वश में करने का कार्य सौंपा ।
सन्तोष और स्पर्शन का सम्बन्ध
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विपाक से इतनी बात सुनकर मैंने अपने
में सोचा कि, 'अरे ! बात तो मिल रही हैं । इससे स्पर्शन का मूल भी समझ मे श्रा रहा है ।' विपाक ने अपनी
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