Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
ने कहा -बच्चों ! यह स्पर्शन प्राण-त्याग कर रहा था तब तुमने इसे बचाया यह बहुत अच्छा किया है और इसके साथ मैत्री स्थापित कर अत्यधिक प्रशस्त कार्य किया। तुम्हारा और स्पर्शन का सम्बन्ध खीर और शक्कर जैसा है। रानी अकुशलमाला के विचार
बाल की माता अकूशलमाला ने सोचा कि, अहो ! बाल का स्पर्शन के साथ जो सम्बन्ध हुआ है वह बहुत अच्छा हुआ। मैं वास्तव में भाग्यशाली हूँ। मेरे पुत्र की इस नवीन मित्रता से मेरा भी गुणानुरूप यथार्थ नाम होगा। जो लोग स्पर्शन के अनुकूल रहते हैं वे मुझे बहुत प्रिय लगते हैं, वे ही मेरा पालन-पोषण करते हैं और वे ही मेरा स्नेह प्राप्त कर सुख का अनुभव कर सकते हैं, अन्य लोग नहीं। मैंने पहले भी इसी प्रकार की परिस्थिति कई बार देखी है। मेरे पुत्र की प्राकृति (मनोभाव) देखकर ऐसा लगता है कि उसे स्पर्शन से बहुत रागात्मकता हो गई है। (भविष्य में भी वे दोनों परस्पर अनुकूल बर्ताव करेंगे, ऐसी सम्भावना है।) अगर ऐसा हुआ तो मेरे मन की सभी इच्छाएं पूर्ण होंगी । इस प्रकार मन में सोचते हुए अकुशलमाला ने बाल से कहा--बेटे बाल ! तू ने बहुत अच्छा किया । तेरे मित्र के साथ तेरा वियोग न हो यही शुभाशीष है । रानी शुभसुन्दरी की प्रतिक्रिया
मनीषी की माता शुभसुन्दरी ने सोचा कि मेरे पुत्र का ऐसे पापी-मित्र के . साथ सम्बन्ध हुआ यह किंचित् भी उचित नहीं हुआ। यह स्पर्शन वास्तव में मित्र नहीं शत्रु है । यह अनेक अनर्थकारी परम्पराओं का कारण है और मेरा तो स्वभाव से ही शत्रु है । पहले भी इसने मुझे अनेक बार अनेक प्रकार से कष्ट पहुँचाया है। अतः इसके साथ हमारा किसी प्रकार मिलाप सम्भव नहीं है । मेरे पुत्र की मुखाकृति से और आँखों की विरक्तता से तो ऐसा लगता है कि उसका इस नये मित्र पर विरक्ति भाव ही है । इस स्थिति को जानकर मेरे मन में कुछ शान्ति है । अतएव मुझे तो ऐसा लगता है कि यह पापी मेरे पुत्र पर अपनी शक्ति का प्रयोग करने में सफल नहीं हो सकेगा । फिर भी भविष्य के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि यह पापी दुरात्मा स्पर्शन बहुत दुष्ट है । ऐसे अनेक विकल्प शुभसुन्दरी के मन में उत्पन्न होने लगे जिससे उसे कुछ व्याकुलता भी हुई, किन्तु वह गम्भीर स्वभाव वाली होने से मौन धारण कर बैठी रही।
इस समय मध्याह्न हो जाने से सभा विसजित हुई और सभी अपने-अपने स्थानों पर चले गये।
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