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२. क्षान्ति कुमारी
विदुर जिनमतज्ञ नैमित्तिक को बुलाने गया और थोड़े ही समय में उन्हें साथ लेकर वापिस आ गया। राजा ने नैमित्तिक को दूर से देखा और उनकी श्राकृति को दूर से देखकर ही उन्हें संतोष हुआ । उन्हें बैठने को आसन दिया और उनका उचित आदर सत्कार किया। उसके पश्चात् नन्दिवर्धन के सम्बन्ध में अभी तक जो कुछ घटित हुआ वह सब उन्हें कह सुनाया । उसे सुनकर बुद्धि- नाडी के संचार (स्वरोदय) से नैमित्तिक ने कहा- महाराज ! श्राप जो प्रश्न पूछ रहे हैं, इस सम्बन्ध में अन्य कोई मार्ग नहीं है । उसका मात्र एक ही उपाय है और वह भी बहुत कठिन है ।
पद्म राजा - हे प्रार्य ! वह उपाय क्या है ? श्राप निःसंकोच कहें । चित्तसौन्दर्य नगर
जिनमतज्ञ - सुनिये महाराज ! एक चित्तसौन्दर्य नामक नगर है जो समस्त उपद्रवों से रहित और सर्व गुणों का निवास स्थान है, कल्याण-परम्परा का कारण है और मन्दभाग्य प्राणियों को दुर्लभ है ।
इस नगर में रहने वाले पुण्यशाली जीवों को रागादि चोर किसी प्रकार का दुःख नहीं पहुँचा सकते । इस नगर के निवासियों को क्षुधा, तृषा आदि किसी प्रकार भी प्रभावित नहीं करती हैं । अतः विद्वान् प्राणी इस नगर को सर्व उपद्रवों से रहित कहते हैं । [१-२]
इस नगर में रहकर लोग ज्ञान प्राप्ति के योग्य बनते हैं और उस नगर में रहने वालों को कला में जितनी कुशलता प्राप्त होती है उतनी अन्य किसी स्थान पर प्राप्त नहीं हो सकती । वहाँ के निवासियों को उदारता, गम्भीरता, धैर्य, वीरता आदि गुरण सहज ही प्राप्त होते हैं । इसीलिये इस नगर को सर्व गुणों का निवास स्थान कहा गया है । [३-४]
चित्तसौन्दर्य नगर के भाग्यशाली निवासियों को क्रमशः उत्तरोत्तर विशिष्ट प्रकार की सुख की श्रेणियां प्राप्त होती रहती हैं और जो सुख प्राप्त होता है उससे कभी अधःपतन नहीं होता । अतः इस नगर को कल्याण - परम्परा का कारण कहा गया है । [५-६]
यह नगर समग्र उपद्रव - रहित, समस्त गुरणों से विभूषित और कल्याणपरम्परा का कारणभूत होने से सर्वदा आनन्द देने वाला और पुण्यशाली जीवों का निवास स्थान है । इसीलिये मन्दभाग्य प्राणियों को उसकी प्राप्ति दुर्लभ है । [ ७-८ ]
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