Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा तो मैं कल्पना करता हूँ कि इससे उसे बहत उद्वेग होगा, संभव है वह आत्महत्या भी करले या अन्य कोई अनर्थ कर बैठे। अत: आप स्वयं इस सम्बन्ध में कुमार से कुछ कहें, यह मुझे तो उचित नहीं लगता।
कलाचार्य- राजन् । विदुर ने आपके समक्ष जो विचार रखे हैं वे वास्तव में युक्तिसंगत और सत्य हैं। मैंने स्वयं भी उस पापी-मित्र की संगति से कुमार को छुड़ाने का बहुत बार कठिन प्रयत्न किये हैं। मेरे मन में बार-बार विचार आता है कि किसी भी प्रकार कुमार और इस पापी-मित्र वैश्वानर की मित्रता भंग हो जाये तो कुमार वास्तव में अपने नाम को सार्थक करने वाला नंदिवर्धन अर्थात् अानन्द में वृद्धि करने वाला बन जाय। पर, इन दोनों का सम्बन्ध इतना अधिक प्रगाढ हो गया है कि कुमार कहीं कोई अनर्थ न कर बैठे इसी भय से वैश्वानर की संगति मैं नहीं छुड़ा सका । इसीलिए मैं मानता हूँ कि कुमार और वैश्वानर का साथ छुड़ाने का प्रयत्न करना अशक्य अनुष्ठान जैसा ही है ।
पदम राजा आर्य ! फिर इसका क्या उपाय किया जाय ?
कलाचार्य-यह तो बहुत गहन बात है। मैं भी इसका उपाय नहीं जान पाया हूँ।
विदूर - देव ! मैंने सुना है कि भूत, भविष्य और वर्तमान काल के सर्व पदार्थों को जानने वाला सिद्धपुत्र जिनमतज्ञ नामक एक प्रसिद्ध नैमित्तिक आजकल अपने नगर में आया हुआ है। संभवतः वह बता सके कि इस सम्बन्ध में अपने को क्या उपाय करना चाहिये ?
पद्म राजा --- बहुत अच्छा । तो फिर तुम स्वयं जाकर उन्हें यहाँ बुला लायो।
विदुर- जैसी महाराज की आज्ञा ।
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