Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
View full book text
________________
१. नन्दिवर्धन और वैश्वानर
* तिर्यंच गति में प्राणी की सांसारिक स्थिति कैसी विचित्र होती है इसका उल्लेख पिछले प्रस्ताव में किया गया है । मनुष्य भव में प्राणी की कैसी स्थिति होती है, इसका वर्णन अब प्रस्तुत किया जा रहा है।
सदागम, भव्यपुरुष और प्रज्ञाविशाला के समक्ष अगृहीतसंकेता को लक्ष्य कर संसारी जीव अपनी कथा आगे कहता हैनन्दिवर्धन का जन्मोत्सव
भद्रे अगहीतसंकेता ! उसके पश्चात् नवीन एकभववेद्य गोली लेकर मैं तिर्यंच गति से निकलकर आगे जाने लगा। इस मनुजगति नगर (देश) में एक भरत नामक मोहल्ला (प्रदेश) है । वहाँ नगरों में तिलक के समान जयस्थल नामक नगर है। उस नगर में सर्व गुरण-सम्पन्न पद्मराजा राज्य करते थे। उनके कामदेव की पत्नी रति जैसी सुन्दर नन्दा देवी नाम की रानी थी। भवितव्यता ने मुझे नन्दा देवी की कोख में प्रवेश कराया । उचित समय तक मैं नन्दा के गर्भ में रहा । गर्भकाल पूर्ण होने पर पुण्योदय के साथ मैंने अपनी माँ को कोख से जन्म लिया। नन्दा रानी ने मुझे देखा और उसे पुत्र हुआ ऐसा उसे अभिमान हुआ । इस समय प्रमोदकुम्भ नामक दासीपुत्र ने महाराजा को मेरे जन्म की बधाई दी। समाचार सुनकर पदमराजा को बहत आनन्द हया और हर्ष से उनका शरीर रोमांचित हो गया। बधाई लाने वाले प्रमोदकुम्भ को पुरस्कार दिया और महाराजा ने धूमधाम से मेरा जन्मोत्सव मनाने की आज्ञा दी । आज्ञानुसार बहुत दान दिया गया. जेल से कैदी मुक्त किये गये, नगर-देवताओं का पूजन किया गया, दुकानों और गृह-द्वारों को तोरण, बन्दनवार आदि लटका कर सजाया गया। बड़े-बड़े राज-मार्गों पर जल और सुगन्धित पदार्थों का छिड़काव किया गया, आनन्द के बाजे बजने लगे, सुन्दर और उज्ज्वल वस्त्र पहिन कर नागरिक राजभवन में आने लगे, अतिथियों का यथायोग्य मान-सन्मान के साथ ग्रादर सत्कार किया गया। शहनाई और दूसरे बाजे बजने लगे, स्त्रियाँ धवल मंगल गाने लगीं । कंचुकी, बोने, कुबड़े और नागरिक स्त्रियों के साथ नाचने लगे। इस प्रकार मेरा जन्म-महोत्सव अानन्द पूर्वक मनाया गया। इसके एक महीने बाद संसारी जीव की जगह मेरा नाम नन्दिवर्धन रखा गया। मझे भी यह अभिमान हुया कि मैं राजपुत्र हूँ। मैं अपनी क्रीडात्रों से माता-पिता को आह्लादित करता हुआ, पाँच धाय माताओं से * लालित-पालित होता हुआ क्रमशः तीन वर्ष का हो गया। ॐ पृष्ठ १३६
* पृष्ठ १४०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org