Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव २ : असंव्यवहार नगर
१७३ संसारी जीव अगृहीतसंकेता से कहता है:--मेरी गृहिणी भवितव्यता में इतने सारे गुण हैं, यह सब बात वह अत्यन्त अबोध सेनापति जानता था।
उपर्युक्त कथनानुसार जब सेनापति अपने मन में विचार कर रहा था तब उसके मन में तरंग उठी कि, अहा ! इसका तो बहुत ही सरल उपाय विद्यमान है, फिर व्यर्थ में ही चिन्ता में अपने को क्यों आकूल-व्याकुल करता हूँ ? संसारी जीव की पत्नी भवितव्यता इन प्राणियों के स्वरूप को अच्छी तरह जानती है कि * किन-किन जीवों को यहाँ से बाहर भेजना चाहिये, अतः उसको बुलाकर उसी से इस सम्बन्ध में पूछ। संसारी जीव को भेजने का निर्णय
अपने मन में जो विचार आये वे सब अत्यन्तप्रबोध सेनापति ने राज्यपाल तीव्रमोहोदय से कहे। उसे भी यह बात अच्छी लगी । अतः भवितव्यता को बुलाकर पूछने की सम्मति दे दी। एक पुरुष को उसी समय भवितव्यता को बुलाने के लिये भेज दिया जो उसे साथ में लेकर तुरंत वापिस आया । प्रतिहारी ने उसे अन्दर प्रविष्ट करवाया। सामान्य रूप से सभी स्त्रियाँ देवी मानी जाती हैं फिर यह भवितव्यता तो अतुल प्रभावशालिनी थी ही, इसलिये राज्यपाल और सेनापति ने मुख से उसे 'पाय लागू कहा । महादेवी भवितव्यता ने भी आशीर्वाद देकर उन दोनों का अभिनन्दन किया। उन्होंने भवितव्यता को बैठने के लिये आसन दिया, जिस पर वह बैठी। फिर जब राज्यपाल ने सेनापति की तरफ आँख के इशारे से बात प्रारंभ करने का संकेत किया, तब सेनापति ने सारी बात कही कि तन्नियोग दूत महाराजा की तरफ से कुछ लोगों को यहाँ से ले जाने के लिये आया है। वृत्तान्त सुनकर भवितव्यता हँस पड़ी।
अत्यन्तप्रबोध--भद्र ! वया हुआ, आप हँसी क्यों ? भवितव्यता--कुछ नहीं। अत्यन्तप्रबोध--तब बिना प्रसंग हँसने का क्या कारण है ? भवितव्यता-इसलिये कि तुमने जो बात कही उसमें कुछ भी सार नहीं है। अत्यन्तप्रबोध-वह किस प्रकार ?
भवितव्यता--इस विषय में आप मुझ से पूछ रहे हैं ? इससे लगता है कि आप वास्तव में अत्यन्तअबोध (बिल्कुल अज्ञान दशा में) ही हैं। ऐसे विषयों में मैं उद्योग (प्रयास) कर चुकी हूँ। अनन्त काल में होने वाली समस्त घटनाएँ मेरे ध्यान में हैं। सर्वभावों को मैं जानती हूँ। तब फिर वर्तमान काल में घटने वाली - * पृष्ठ १२६
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