________________
उपमिति-भव-प्रपंच कथा
चल रही थी उस से लगता है कि राजा-रानी पर अब तक जो निर्वीर्य और बांझपन का कलंक लगा हुआ था, वह दूर हो गया है ।
प्रज्ञाविशाला-प्रिय सखि ! बाजार में तुमने क्या सुना ? भव्यपुरुष के भावी गुणों का वर्णन
अगृहीतसंकेता- बाजार में बहुत से मनुष्यों के बीच मैंने एक अग्रगण्य अतिसुन्दर प्राकृति वाले पुरुष को देखा। इस सुन्दर पुरुष को नगर के जिज्ञासु लोग विनयपूर्वक पूछ रहे थे-भगवन् ! आज जिस राजपुत्र का जन्म हुआ है वह कैसे गुणों को धारण करने वाला होगा?
उत्तर में भद्रपुरुष ने कहा-भद्रजनो ! सुनो, यह बालक कालक्रम से बढ़ता-बढ़ता सर्व गुण-सम्पन्न बनेगा । इसमें इतने अधिक गुण होंगे कि उन सब गुणों का तो वर्णन भी नहीं किया जा सकता और यदि मैं वर्णन करने भी लगू तो उन सब गुणों को तुम याद नहीं रख सकते, तथापि इसके गुणों का संक्षेप में वर्णन करता हूँ। सुनो, यह बालक रूप का उदाहरण, यौवन का भण्डार, लावण्य का मन्दिर, प्रश्रय का दृष्टान्त, औदार्य का निकेतन, विनय का भण्डार, गम्भीरता का सदन, विज्ञान का स्थान, दाक्षिण्य की खान, चातुर्य का उत्पति स्थान, स्थिरता की परिसीमा, धीरता का प्रत्यादेश, लज्जाशील, किसी भी विषय को झट से समझने की शक्ति का उदाहरण और धृति, स्मरणशक्ति, श्रद्धा तथा जिज्ञासा रूपी सुन्दरियों का पति होगा। अनेक भवों में उसने अच्छे कर्म करने का अभ्यास कर रखा है इससे वह अतिशय प्रगतिशील होने से बालकपन में भी केलिप्रिय नहीं बनेगा । वह लोगों पर वात्सल्यभाव दिखाएगा, गुरुजनों के प्रति विनम्रता का आचरण करेगा, धर्मानुरागी होगा, विषय-भोगों में अलोलुप होगा, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर इन अन्तरंग शत्रुओं का विजेता बनेगा और सब के चित्त को अत्यन्त आनन्द देने वाला बनेगा।
__ इन सब बातों को सुन कर लोगों ने भय और हर्ष मिश्रित दृष्टि से चारों तरफ देखकर कहा-महाराज और महारानी की प्रकृति प्रतिविषम (कर) होने से वे हम सब को अनेक प्रकार के निरन्तर दुःख देते रहते हैं। पर, यह एक काम तो उन्होंने बहुत ही अच्छा किया जो सब देश-देशान्तरों में प्रसिद्ध मनुजगति नगरी में भव्यपुरुष सुमति को जन्म दिया। ऐसे सुन्दर बालक को जन्म देकर उन्होंने अपने समस्त दुश्चरित्रों को धो दिया और अपने पर लगे निर्बीज एवं बांझपन के कलंक को भी मिटा दिया।
हे बहिन ! यह सब वृत्तान्त मैंने बहुत ध्यानपूर्वक सुना था तभी से मेरे मन में यह शंका उठ रही थी कि राजा-रानी तो बांझ है फिर उनके यहाँ पुत्र का * पृष्ठ ११५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org