Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव २ : सदागम का परिचय
१५६ प्रज्ञाविशाला-प्यारी सखि ! ध्यानपूर्वक सुन । कर्मपरिणाम महाराज की शक्ति को किसी भी स्थान पर रोका नहीं जा सकता अर्थात् वह अप्रतिहत शक्तिशाली है । यह महाराजा संसार-नाटक करवाते हुए निरंतर अपनी इच्छानुसार धनवान को भिखारी, ॐ भाग्यशाली को भाग्यहीन, रूपवान को कुरूप, पण्डित को मूर्ख, शूरवीर को कायर, अहकारी (अभिमानी) को दीन, तिर्यंच को नारकी, नारकी को मनुष्य, मनुष्य को देव और देव को पशु बना देता है। वह बड़े-बड़े राजाओं को कीड़ा (कीट), चक्रवर्ती को भिखारी और दरिद्री को ऐश्वर्यशाली बना देता है। अरे! इसके बारे में अधिक क्या कहें ? अपनी इच्छानुसार बड़े से बड़ा भाव परिवर्तन करते हुए उसको कोई रोक नहीं सकता। अतुल शक्तिशाली महाराजा भी सदागम के नाममात्र से भयभीत हो जाता है और उसकी गंध से भी दूर भाग खड़ा होता है। यह महाराजा सब लोगों को संसार नाटक में तब तक ही विडम्बित कर सकता है जब तक कि यह सदागम महापुरुष जोर से हंकार नहीं करता। यदि ये एक बार भी गर्जना कर दें तो कर्मपरिणाम महाराजा उसके भय से भयभीत होकर, युद्ध में जैसे कायर अपने प्राण गंवा देता है उसी प्रकार प्राणियों को छोड़कर भाग खड़ा होता है । इस प्रकार हांक लगाकर सदागम ने अभी तक अनन्त प्राणियों को कर्मपरिणाम राजा के जाल से छुड़ाया है। कर्मपरिणाम से मुक्त जीवों का स्थान
__ अगहीतसंकेता-सदागम ने अनन्त प्राणियों को उसके जाल से छुड़ाया है ऐसा तू कहती है, तब वे प्राणी दिखाई क्यों नहीं देते ?
प्रज्ञाविशाला कर्मपरिणाम राजा के राज्य-शासन से बाहर एक निर्वत्ति नामक महानगर है । सदागम की हुंकार से जिन पर कर्मपरिणाम राजा की आज्ञा नहीं चलती और जो यह जान जाते हैं कि सदागम ने उन्हें कर्मपरिणाम के चंगुल से छुड़ा लिया है वे कर्मपरिणाम महाराज के सिर पर पाँव रखकर, उड़कर निर्वत्तिनगर में पहुँच जाते हैं। उस नगर में पहुँचने के बाद सर्व प्रकार के उपद्रवों
और त्रास से रहित होकर वे वहाँ सर्वकाल परमसुखी जीवन व्यतीत करते हैं। इसीलिये सदागम द्वारा छुड़ाये गये प्राणी यहाँ दिखाई नहीं देते। समस्त प्राणियों के सुखी नहीं होने का कारण
__ अगहीतसंकेता–यदि ऐसा ही है तो फिर वे परमपुरुष सब लोगों को क्यों नहीं छुड़ाते ? यह अतिविषम प्रकृति वाला महाराजा कर्मपरिणाम तो सभी पामर जीवों को अतिशय दुःख देता है। यदि जैसा तुम कह रही हो वैसी शक्ति महापुरुष सदागम में है तब लोगों की कदर्थना को देखकर चुप रहना उन जैसे श्रेष्ठ पुरुष के लिये योग्य नहीं है। * पृष्ठ ११७
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