Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा नमस्कार किया। उस दिन तो वे अपने-अपने स्थान पर चली गईं, परन्तु उसके पश्चात् वे दोनों सखियाँ प्रतिदिन सदागम के पास आने लगी और उन महात्मा की सेवा-भक्ति करने लगी जिससे उनके दिन आनन्द लीला पूर्वक व्यतीत होने लगे ।
[१५-२०] राजपुत्र सम्बन्धी निर्णय
बद्धिमान महात्मा सदागम ने एक बार विशाल दृष्टि वाली प्रज्ञाविशाला को उद्देश्य कर कहा-सर्व गुरणसम्पन्नता को प्राप्त करने वाले राजपुत्र भव्यपुरुष को बचपन से ही तुझे अपने स्नेह से सिक्त कर देना चाहिये । अतः हे भद्रे ! तू राजकुल में जाकर वहाँ अपना परिचय बढ़ा और राजपुत्र की माता कालपरिणति महारानी का मन मुग्ध कर किसी भी प्रकार से तू अपने को उस राजपुत्र की धाय बनाले । यदि यह बालक तुझ में विश्वास करेगा तो चाहे वह कितने ही सुख में पले फिर भी वह मेरे वश में रहेगा। ऐसे सुपात्र में अपना समस्त ज्ञान-कोष स्थापित कर मैं शीघ्र ही कृतकृत्य हो जाऊँगा।
[२१-२५] सदागम की आज्ञा सुनकर, 'हे आर्य ! आपकी जैसी प्राज्ञा' कहकर 23 मस्तक झुकाकर, उनके वचनों का आदर करते हुए, जैसा उन्होंने कहा उसी प्रकार उसने किया । अर्थात् प्रज्ञाविशाला राजपुत्र की धाय नियुक्त हो गई । भव्यपुरुष ऐसी सुन्दर धाय को प्राप्त कर प्रसन्न हुअा और उस धाय के द्वारा लालित-पालित होता हुआ देवताओं के समान सुखानुभव करता हुआ लीलापूर्वक बढ़ने लगा : अनुक्रम से वृद्धि प्राप्त करते हुए वह राजपुत्र कल्पवृक्ष की भांति सब लोगों के नेत्रों को आनन्द देने लगा। सदागम ने उसमें जिन-जिन श्रेष्ठ गुणों का वर्णन किया था वे सब गुण उसमें कुमारावस्था से ही प्रत्यक्ष दिखाई देने लगे। [२६-२६] सुमति को गुरण विचारणा
एक दिन प्रज्ञाविशाला उस राजपुत्र को सदागम का परिचय कराने उनके पास ले गई । महापुण्यशाली जीव भावीभद्र कुमार को महाभाग्यवान सदागम को देखते ही हर्षातिरेक हुा । अन्तःकरण पूर्वक उनको नमस्कार कर राजकुमार उनके पास बैठा और वे जो अमृत जैसे मनोहर वाक्य बोल रहे थे उन्हें ध्यान पूर्वक उत्साह से सुनने लगा । चन्द्र किरण जैसे निर्मल गुरगधारक राजपुत्र भव्यपुरुष का मन सदागम के प्रति आकर्षित हुया और वह अपने मन में विचार करने लगा'अहा ! कितने मधुर वचन हैं ! इनका रूप कितना अद्वितीय है ! इनके गुण कितने आकर्षक हैं ! मैं सचमुच मैं भाग्यशाली हूँ कि ऐसे महात्मा पुरुष के मुझे दर्शन हुए। इस मनुजगति नगर में जहाँ ऐसे महापुरुष रहते हैं, वह भी भाग्यशाली है। इन बुद्धिमान महात्मा के दर्शन कर आज मेरे पाप धुल गये हैं । वास्तव में भगवान् सदागम भूत, भविष्य और वर्तमान के सारे भावों का वर्णन बहुत ही सुन्दर पद्धति से करते हैं। * पृष्ठ १२२
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