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प्रस्ताव २ : असंव्यवहार नगर
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घटना का वर्णन सब के सन्मुख नहीं कर सकता, अतः आप ऐसी आज्ञा प्रदान करें कि हम किसी निर्जन स्थान में बैठकर बातचीत कर सकें।'
सदागम ने जैसे ही सभा की तरफ आँख से इशारा किया वैसे ही सभा में आये हुए विचक्षण लोग तत्क्षण उठकर दूर चले गये। दूसरे लोगों के साथ जब प्रज्ञाविशाला भी उठने लगी तब सदागम ने उसे कहा कि, तू भी बैठकर सुन । सदागम के कहने से उसके पास ही राजपुत्र भव्यपुरुष भी बैठा रहा । पश्चात् इन चारों के समक्ष अगृहीतसंकेता को उद्देश्य कर संसारी जीव ने अपना वृत्तान्त कहना प्रारम्भ किया।
७. असंव्यवहार नगर अत्यन्त-प्रबोध और तीन मोहोदय
इस संसार में अनादि काल से प्रतिष्ठित (स्थापित और अनन्त लोगों से परिपूर्ण एक असंव्यवहार नगर है। इस नगर में अनादि वनस्पति नाम के कुल पुत्र रहते हैं। वहाँ पूर्व-वरिणत कर्मपरिणाम महाराजा के सम्बन्धी अत्यन्त-प्रबोध नामक सेनापति और तीव्रमोहोदय नामक महत्तम (सूबेदार-राज्यपाल) उस पद पर सर्वदा के लिये नियुक्त हैं । उस नगर में रहने वाले सभी लोग कर्मपरिणाम महाराजा की आज्ञा से, अत्यन्त-अवोध और तीव्रमोहोदय के प्रताप से अस्पष्ट चेतना वाले ऊंघते हुए से दिखाई देते हैं। कार्य-अकार्य का विचार नहीं होने से नशे में हों, ऐसे एकदूसरे में प्रासक्त और मूच्छित से दिखाई देते हैं। स्पष्ट दिखाई देने वाली कोई भी चेष्टा न करने से मृत जैसे दिखाई देते हैं। अत्यन्त-अबोध और तीव्रमोहोदय इन सब जीवों को सर्वदा के लिये निगोद नामक कोठरी में डालकर एक पिण्ड जैसा गड्डमड्ड करके रखते हैं। वे समस्त जीव अत्यन्त मूढ़ होने से कुछ भी नहीं जानते, कुछ भी नहीं बोलते, हिलते-डुलते नहीं, छेदन-भेदन को प्राप्त नहीं होते, जलते नहीं, भीगते नहीं, टूटते.फूटते नहीं, आघात नहीं पाते और व्यक्त वेदना का अनुभव नहीं करते। इसके अतिरिक्त भी किसी प्रकार का वे लोक-व्यवहार नहीं करते । उस नगर में रहने वाले जीवों का अपना कोई और किसी प्रकार का व्यवहार नहीं होने से इस नगर का नाम असंव्यवहार नगर पड़ गया। उस नगर में संसारी जीव नामक मैं भी एक कुटुम्बी था । इस नगर में रहते हुए मुझे अनन्त काल बीत गया। तत्परिणति का निवेदन
एक दिन राज्यपाल तीव्रमोहोदय सभा बुलाकर बैठे थे और उनके पार्श्व में अत्यन्तप्रबोध सेनापति बैठा था। इतने में ही तत्परिणति नामक प्रतिहारिणी ने सभा मण्डप में प्रवेश किया । वह समुद्र तरंग के समान मोतियों के समूह को धारण करने वाली, वर्षा ऋतु की लक्ष्मी की तरह समुन्नत पयोधरा, मलयाचल पर्वत की मेखला की तरह चन्दन की सुगन्ध को धारण करने वाली और वसन्त ऋतु की
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