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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
सकी। यह राजा तो अत्यधिक बीज वाला है (पुत्रोत्पादक शक्ति इसमें साधारण लोगों से अनन्त गुणा अधिक है), पर कहीं लोग उसे दृष्टि (नजर) न लगादें इसलिये अविवेक आदि उसके मन्त्रियों ने यह बात फैला रखी है कि वह निर्बीज है।* महारानी भी अनन्त पुत्र-पुत्रियों को जन्म देने की सामर्थ्य रखने वाली है, पर दुर्जनों की उसे नजर न लग जाये इसीलिये मंत्रियों ने उसे भी दुनिया में वंध्या बताया है । सुन- इस संसार में जितने भी पुत्र-पुत्रियाँ उत्पन्न होते हैं उन सब में परम-वीर्य रूप से इन राजा-रानी का हाथ होने से परमार्थ से तो ये ही उन सब के वास्तविक माता-पिता हैं। फिर ये राजा-रानी जब नाटक देखते हैं तब इनका माहात्म्य कितना अधिक हो जाता है, क्या तूने वह देखा-सुना नहीं ? यह महाराजा अपनी इच्छानुसार सब पात्रों को मनुष्य, नारकी, तिर्यंच, देवरूप संसार के अन्तर्गत अनेक लाख योनियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के रूप धारण करवा कर नाटक करवाते हैं । महाराजा जिन प्राणियों को भिन्न-भिन्न रूप धारण करवाते हैं उन सब को यह महारानी गर्भावस्था, बालकपन, कुमारपन, यौवन, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था, मृत्यु और फिर पुनः अन्यत्र गर्भप्रवेश, वहाँ से निकलकर फिर गर्भप्रवेश आदि स्थितियों में अनन्त बार परिवर्तन करवाती है ।
अगृहीतसंकेता–प्रिय सखि ! जो बात तू कह रही है वह तो मैंने सुन रखी है, पर मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि कर्मपरिणाम महाराजा सर्व पात्रों के भिन्न-भिन्न रूप धारण कराने में शक्तिमान हैं और कालपरिणति महारानी उन.. अवस्थाओं में बार-बार फेर बदल कर सकती है, इससे क्या यह कहा जा सकता है कि वे लोगों के माता-पिता हैं ? ।
प्रज्ञाविशाला-प्रिय सखि ! तू तो बिल्कुल भोली है। गाय जैसा जानवर भी आधी बात कहने से पूरी बात समझ लेता है, पर तू तो इस स्पष्ट बात को भी नहीं समझ सकती । सुन, यदि वास्तविक दृष्टि से विचार करें तो यह संसार एक नाटक है, अतः उस नाटक को जो उत्पन्न करने वाले हैं वे परमार्थतः सब के माँबाप गिने जा सकते हैं, समझी ?
अगृहीतसंकेता–प्रिय बहिन ! यदि वे सम्पूर्ण संसार के माँ-बाप हैं, फिर भी दुर्जन प्राणियों की उन पर नजर न लगे, इस भय से अविवेक आदि मंत्रियों ने दुनिया में राजा को निर्बीज और रानी को वंध्या प्रसिद्ध किया है, तब फिर भव्यपुरुष का जन्मोत्सव वे इतने भव्य रूप से क्यों मना रहे हैं, इसका क्या कारण है ? सदागम का स्वरूप
प्रज्ञाविशाला-इस भव्यपुरुष को राजा-रानी के पुत्र रूप में प्रसिद्ध करने का क्या कारण है ? सुन-इस नगरी में एक शुद्ध सत्यवादी सदागम * पृष्ठ ११३
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