Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव २ : अगृहीतसंकेता और प्रज्ञाविशाला
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'आपकी जैसी प्राज्ञा' कहकर मन्त्रियों ने महाराज को नमस्कार किया और उनकी आज्ञाओं को तुरन्त क्रियान्वित किया। सर्व प्राणियों को आश्चर्य उत्पन्न करने वाला वह जन्म-दिन-महोत्सव आनन्दपूर्वक व्यतीत हुआ। नामकरण
तत्पश्चात् योग्य समय पर कर्मपरिणाम महाराजा ने विचार किया कि जब इस पुत्र का महादेवी की कुक्षि में प्रवेश हुअा था तब देवी को स्वप्न पाया था कि एक सर्वांगसुन्दर पुरुष ने उसके मुख द्वारा शरीर में प्रवेश किया है, अतः इस पुत्र का नाम भी इस घटना के अनुरूप रखना चाहिये। ऐसा विचार कर महाराजा ने अपने पुत्र का नाम भव्यपुरुष रखा । महारानी को जब यह बात ज्ञात हुई तब उसने महाराजा से प्रार्थना की, 'हे देव ! यदि आप स्वीकृति प्रदान करें तो मैं भी पुत्र का एक दूसरा नाम रखना चाहती हूँ।' राजा ने कहा, 'ऐसी मंगलमयी बात में कभी मतभेद हो सकता है ? इसमें क्या आपत्ति है ? तू ने मन में जो कुछ भी नाम निश्चित किया हो उसे प्रसन्नता पूर्वक कह ।' तब महादेवी ने कहा, 'यह पुत्र जब गर्भ में था तब मुझे बहुत से अच्छे-अच्छे श्रेष्ठ कार्य करने की बुद्धि होती थी इसलिये मैं इसका दूसरा नाम सुमति रखना चाहती हूँ।' राजा ने कहा, 'देवी ! यह तो दूध में शक्कर डालने जैसा हुआ; क्योंकि तुम्हारी निपुणता से उस भव्यपुरुष का सुमति जैसा नाम अधिक सुन्दर रहेगा।' इस प्रकार कहकर, सुमति नाम से सन्तुष्ट होकर राजा ने हर्षपूर्वक नामकरण महोत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया।
४. अगृहीतसंकेता और प्रज्ञाविशाला
सउ मनुजगति नगरी में अगृहीतसंकेता नामक एक ब्राह्मणी रहती थी। लोगों के मुख से यह सुनकर कि राजकुमार का जन्म-महोत्सव चल रहा है और उसका नामकरण हो गया है, उसने अपनी सखी से कहा-प्रिय सखि प्रज्ञाविशाला! लोगों में जो नयी आश्चर्योत्पादक बात चल रही है क्या वह तूने सुनी है ? लोग कह रहे हैं कि कालपरिणति महारानी ने भव्यपुरुष नामक पुत्र को जन्म दिया है।
प्रज्ञाविशाला-प्रिय बहिन ! इसमें आश्चर्य की क्या बात है !
अगहीतसंकेता-- मैंने पहले सुना था कि यह कर्मपरिणाम महाराजा अपने स्वरूप से ही निर्बीज (पुत्रोत्पादक शक्तिहीन) है और कालपरिणति राणी वन्ध्या (बांझ) है । फिर भी उनके पुत्र उत्पन्न हुआ है, यह सचमुच ही महान् आश्चर्य की बात है। राजा और रानी की जननशक्ति
- प्रज्ञाविशाला- अरे भोली ! तेरा अगृहीतसंकेता नाम ठीक ही है, क्योंकि तू अपने नाम के अनुसार विषय के भीतर रही हुई बात को भली प्रकार नहीं समझ
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