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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
खेद हा । फिर तत्क्षण अपने पति के पास जाकर, उस विचक्षण महारानी ने अपने स्वप्न दर्शन की बात कही।
[१०-१२] राजा - महादेवी ! इस स्वप्न का जो फल मेरे मन में जच रहा है उसे कहता हूँ, सुनो । तुझे आनन्द देने वाला एक श्रेष्ठ पुत्र होगा पर वह अधिक समय तक तेरे घर में नहीं रहेगा । किसी धर्माचार्य के वचन से बोध प्राप्त कर अपने लक्ष्य को सिद्ध करेगा।
[१३-१४] रानी- मेरे पुत्र होगा, बस इतना ही मेरे लिए बहुत है । मुझे तो इसी से पूर्णानन्द प्राप्त होगा। पश्चात् वह अपनी इच्छानुसार चाहे कुछ भी करे ।
[१५] उसी रात को कालपरिणति रानी को गर्भ रहा। वह हर्ष पूर्वक गर्भ क पालन करने लगी। जब गर्भ तीन मास का हुआ तब रानी को दोहद हुआ कि "मैं विश्व के समस्त प्राणियों को अभयदान दूं, याचको को धन हूँ और जो अपढ़, अज्ञानी हैं उन्हें ज्ञान हूँ, ये सभी वस्तुएं जिसे जितनी चाहिये उतनी दूं।" ऐसीऐसी जो-जो इच्छाएँ उसे होती गई वे सब उसने महाराजा को बतादी और महाराजा की आज्ञा से उसकी सभी इच्छाएं पूरी होने लगीं। इस प्रकार गर्भ-वहन करते हुए, गर्भकाल पूर्ण होने पर शुभ दिन शुभ मूहूर्त में महादेवी ने समग्र लक्षणों से युक्त एक सुन्दर बालक को जन्म दिया ।
[१६-१६] जन्मोत्सव
प्रियनिवेदिका नामक दासी ने तत्काल जाकर राजा को सहर्ष पुत्र जन्म की बधाई दी। पुत्र जन्म का संवाद सुनकर महाराजा को वर्णनातीत अत्यधिक आह्लाद का अनुभव हुआ और राजा ने दासी को प्राशा से अधिक पुरस्कार देकर प्रसन्न किया। राजा को उस समय जो अपूर्व यानन्द हुया वह उसके रोमांचित-पुलकित होने से प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा था । अानन्द से ओत-प्रोत राजा ने अपने राज्य-मन्त्रियों को आदेश दिया, “मंत्रियो ! महारानी को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है, अतः इस प्रसंग में घोषणापूर्वक अच्छे-बुरे, योग्य-अयोग्य का विचार किये बिना सभी प्राणियों को मनोवांछित दान दो । गुरुओं का आदरसत्कार करो । स्वजन-सम्बन्धियों का सन्मान करो । मित्रों को समग्र प्रकार से सन्तुष्ट करो । कैदियों को बन्दीगह से मुक्त करो। आनन्द के बाजे बजायो । इच्छानुसार प्रगल्भ हर्ष से नाचो, कूदो, खायो, पीरो, स्त्रियों के संग क्रीड़ा करो। कर लेना बन्द करो । दण्ड माफ करो । भयभीत लोगों को धीरज बन्धाो । सर्व प्राणी स्वस्थ चित्त होकर सुख पूर्वक रहें और किसी भी प्रकार के अपराध की गंध भी मत आने दो।"
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