Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
View full book text
________________
५२
उपमिति-भव-प्रपंच कथा
महद्धिकमहातेजस्वी इन्द्रादि देव शब्दादि इन्द्रियों के विषयों को यथेच्छ सखपर्वक भोगने में योग्य, दीर्घकाल पर्यन्त सुखी अवस्था में रहने वाले भी यदि सम्यकदर्शन रूपी रत्न से रहित होते हैं तो विवेकरूपी धन से समृद्ध महर्षियों की दष्टि में वे दरिद्रता से आक्रान्त की प्रतिमूर्ति और वियुत् चपलता के समान जीवन धारण करने वाले प्रतीत होते हैं। ऐसी दशा में संसार रूपी उदर की गफा में रहने वाले शेष समस्त प्राणियों के लिये तो उन महर्षियों की दष्टि में स्थान हो कहाँ है ?
धनवान की कुशंकाएं
जैसे पर्वोक्त अनेक प्रकार के तिरस्कार से प्राप्त झूठा अन्न खाते हुए उस भिखारी को सर्वदा यह शंका बनी रहती थी। कि 'कोई शक जैसे बलवान् पुरुष मेरा भोजन चरा न ले' वैसे ही महामोह में पड़ा हुआ यह जीव धन, औरत और उसके द्वारा कल्पित एवं मान्य वैभव जिसको उसने अत्यन्त कष्ट झेलकर प्राप्त किया है उनका उपभोग करते समय वह सर्वदा भयभीत बना रहता है। बह चोरों से डरता है, राज-भय से त्रस्त रहता है, चचेरे भाई आदि स्वजनों से काँपता रहता है और याचकों से उद्विग्न रहता हैं । यहाँ अधिक क्या कहें ? वह अत्यन्त निःस्पही वीतरागी मुनिपुगवों से भी शंकित रहता है। वह सोचता है-ये मनिराजमझे उपदेश देकर वचन चातुरी से * छलकर मेरे धन को लूटना चाहते हैं। इस प्रकार कविचाररूपी विष के नशे में पड़ा हुआ यह क्षुद्रजीव सोचता रहता है-अरे ! यह सारा धनमाल-मकान आदि कहीं आग की चपेट में आकर नष्ट न हो जाए, बाढ़ में नष्ट न हो जाए, चोर आदि लूट न ले जाएँ, इसलिये इसकी मझे सुरक्षा करनी चाहिये; किन्तु उसका किसी पर भी विश्वास न होने से उसका कोई सहायक नहीं होता। अतएव वह अकेला ही रात में उठकर जमोन में बहत गहरा गड्ढा खोदता है, किसी को ज्ञात न हो इस प्रकार धोमी गति से चलकर अपना धन उस गड्ढे में रखता है और गड्ढे को पूर कर समतल कर देता है। उस पर धूल और कचरा आदि डालता है ताकि उस स्थान को कोई पहचान नहीं सके। भविष्य में स्वयं भी उस स्थान को कहीं भूल न जाए इसलिये उस पर अनेक प्रकार के चिह्न (निशान) लगाता है । कोई भी प्राणी किसी प्रयोजन से उस स्थान की
ओर आवागमन करे तो वह पुनः पुनः उसको ध्यान पूर्वक देखता है। कदाचित उस स्थान पर स्वाभाविक रूप से किसी की दृष्टि पड़ जाए तो उसके हृदय में शंकाएं बलवतो हो जाती हैं और सोचता है--'पोह ! इसको मालूम पड़ गया है, इस प्रकार की शंकाओं से ग्रस्त और व्याकुलता के कारण उसे रातभर नींद नहीं पाती। रात में ही उठकर उस स्थान पर जाकर, उस गड्ढे से धन निकालकर दूसरा
* पृष्ठ ४०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org