Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव १ : पीठबन्ध
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गडढा खोदकर उसमें धन रखता है। धन को गाड़ते समय भय के कारण चारों
ओर देखता रहता है, कहीं कोई मुझे देख न ले इस भय से अपना शारीरिक व्यापार बन्द कर देता है अर्थात् निष्पन्द और निश्चेष्ट-स। होकर कार्य करता है। फिर भी उसका मन उस गाड़े हुए धा के बंधन में ऐसा बध जाता है कि उस स्थान से उसका मन एक कदम भी पीछे नहीं लौटता। उस धन की रक्षा के लिये सैकड़ों प्रयत्न करने पर भी कदाचित् संयोगवश उस स्थान को कोई पहचान जाए और उस धन का हरण कर ले तो उस समय उस पर अकाल में ही वज्रपात सा ! हो जाता है । वह मृतप्राय होकर प्रलाप करता है--प्रो बाप ! हाय माँ ! अरे भाई ! मैं मर गया। इस प्रकार व्यथित वचनों से रुदन करता हुअा वह विवेकीजनों की करुणापूर्ण सांत्वना प्राप्त करता है । धन-नाश के आघात से वह मूछित हो जाता है और कदाचित् मृत्यु को भी प्राप्त करता है। इस प्रकार थोड़े से धन पर मरने वाले प्राणियों के व्यवहार और चेष्टानों का संक्षेप में दिग्दर्शन कराया है।
कामुक की चेष्टाएँ
इसी प्रकार स्वयं की स्त्री के मोहपाश में बंधा हुआ यह जीव ईर्ष्यारूपी शल्य से पीडित होता है। अन्य किसी प्राणी की मेरी पत्नी पर दृष्टि न पड़ जाए इस भय और ईर्ष्या से वह अपने घर से बाहर नहीं निकलता। उसकी रातों की नींद हराम हो जाती है, माता-पिता का भी त्याग कर देता है, स्वजनसम्बन्धियों के प्रेम में शैथिल्य लाता है, अपने इष्टमित्रों को भी घर पर पाने का निमंत्रण नहीं देता, धर्मकार्यों का तिरस्कार करता है, और लोकनिन्दा का भी भय नहीं रखता । वह तो केवल स्त्री के मुख को अनवरत देखता रहता है, मानों वह परमात्मा की मूर्ति हो और स्वयं एक योगी हो ! इस प्रकार सारे कामकाज छोड़कर वह प्रतिक्षण उसका ही ध्यान करता हुया घर में बैठा रहता है। उसकी वह स्त्री जो कुछ करती है वह उसे अच्छा लगता है, वह जो कुछ बोलतो है उसे आनन्दकारी प्रतीत होता है, वह जो कुछ चाहती है उसे उसकी चेष्टाओं से समझकर वह वस्तु प्राप्त करने योग्य है ऐसामान ता है। * मोह-विडम्बित जीव मन में विचार करता है-यह मेरे ऊपर अनुराग रखतो है, मेरा हित करने वाली है, इसके समान सुन्दर, उदार और सौभाग्यादि गुणों से युक्त अन्य दूसरी स्त्रो सारे विश्व में नहीं है। यदि कदाचित् कोई पुरुष उसको पत्तो का माता, बहिन, देवा अथवा पूत्री की दृष्टि से उसकी और झांके तब भी वह अपनो मर्वता के कारण उन पर अत्यन्त कपित हो जाता है; विह्वल हो जाता है, मूछिन हा जाता है और जेसे मर ही रहा हो ऐसी दशा को प्राप्त हो जाता है । ऐसी दशा में क्या करना चाहिो,
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