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उपमिति भव- प्रपंच कथा
उपदेश का क्रम
उपदेश देने का क्रम इस प्रकार है - सर्वप्रथम तो प्रयत्नपूर्वक सर्वविरति का उपदेश देना चाहिये, किन्तु जब यह प्रतीत हो कि यह जीव सर्वविरति से विमुख है, ग्रहण करने में असमर्थ है तब देशविरति की प्ररूपणा करनी चाहिये अथवा देशविरति चारित्र प्रदान करना चाहिये । यदि प्रारम्भ में देशविरति का ही उपदेश दिया जाय तो प्राणी उसी पर अनुरक्त होकर सीमित ही त्याग कर सकेगा और सूक्ष्म (स्थावर ) जीव हिंसा की प्राचार्य से अनुमति प्राप्त कर लेगा; अतएव प्रारम्भ में सर्वविरति का ही उपदेश देना चाहिये । यहाँ देशविरति चारित्र का पालन थोड़ा सा परमान्न- भक्षण के समान समझें । इस चारित्र का पालन करने से जीव की विषयाकांक्षा रूपी भूख किंचित् शान्त हो जाती है, राग-द्वेषादि अन्तरंग (भाव) रोग क्षीण हो जाते हैं, ज्ञान-दर्शन की प्राप्ति से जो सुख हुआ था उससे अत्यधिक प्रवर्धमान स्वाभाविक स्वास्थ्यरूप प्रशम सुख प्राप्त होता है, श्रेष्ठ भावनात्रों के योग से चित्त प्रमुदित हो जाता है और देशविरति चारित्र के दायक धर्माचार्य के प्रति 'ये मेरे परमोपकारी हैं' ऐसी भावना उत्पन्न हो जाती है तथा उनके प्रति भक्ति जागृत होती है । फलतः यह जीव सद्गुरु को इस प्रकार कहता है'आप ही मेरे नाथ हैं ।' मैं तो खराब लकड़ी के समान गाढकर्मी प्रधम जीव हूँ, फिर भी आपने स्वसामर्थ्य और प्रयत्नों से मुझे योग्य और गुणों का पात्र बना दिया ।
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औषध सेवन का उपदेश
निष्पुण्यक के कथन को सुनकर धर्मबोधकर ने उसे पुनः समझाया, उसका विस्तार से वर्णन मूल कथा - प्रसंग में कर चुके हैं, उसका सारांश यह है : --" इस प्रसंग में धर्मबोधकर ने उस रंक को अपने पास बुलाया, मधुर वचनों से उसके चित्त को आनन्दित किया, उसके सन्मुख महाराजा के गुणों की प्रशंसा की, स्वयं का अनुचरभाव दिखाते हुए उसे दासत्व स्वीकार करने को प्रेरित किया, महाराज के विशेष गुणों को जानने की उसके हृदय में उत्कंठा जागृत की, ज्ञान-प्राप्ति से ही व्याधियाँ कम होती है और इन व्याधियों को नष्ट करने का कारण तीन प्रौषधियाँ हैं उसे समझाया । इन औषधियों का बारम्बार प्रयोग करने का निर्देश दिया, इनके प्रयोग से ही महाराज की सेवा सफल होती है और महाराज की आराधना से महाराज के समान ही विशाल राज्य प्राप्त होता है ऐसा प्रतिपादित किया ।"
ऐसे ही धर्मगुरु भी ज्ञान दर्शन सम्पन्न और देशविरतिधारी इस जीव को विशिष्ट स्थिरता प्रदान करने हेतु इसी प्रकार आचरण करते हैं । जैसे:
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