Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपच-कथा
विविध पदार्थों का इतना विशाल संग्रह होगा कि सामान्य प्राणी विश्वास नहीं कर सकेंगे कि मेरे घर में धान्यादि इतने पदार्थ हैं । मुकुट, बाजूबन्द, कुण्डल, प्रालम्ब (लम्बे हार) आदि विविध भाँति के प्राभूषण मेरे चित्त को प्रानन्दित करेंगे। चीनांशुक (रेशमी), सूती और देवांशुक (देववस्त्र) आदि विविध जाति के वस्त्र मेरे चित्त को अनुरंजित करेंगे। मेरे महल के सामने ही क्रीड़ा करने योग्य उद्यान मेरे चित्त में पानन्द को बढ़ाते रहेंगे। इन उद्यानों में रत्न, सोना आदि विविध धातुओं से निर्मित कृत्रिम क्रीड़ा-पर्वत शोभित होंगे; जो बावड़ी, विशाल कुजालिका (पानी देने की बड़ी नाली), फव्वारे और अनेक जलाशय होने से अत्यन्त रमणीय होंगे । बकुल, पुन्नाग, नाग, अशोक और चम्पा आदि अनेक जाति के वृक्षों से पल्लवित और रमणीय होंगे। पाँच प्रकार के सुगन्धित और मनोर मफलों के भार से जिसकी शाखाँयें झुक गई हैं तथा कुमद, कोकनद आदि कमलों से यह अत्यन्त शोभित होंगे और गुजारव करते प्रमरों की आवाज से कर्णप्रिय गीतों की झांकार चलती होंगी। अर्थात् मेरे महल के सन्मुख ऐसे उद्यान होंगे। सूर्य के रथ की सुन्दरता को भी पराजित करने वाले अनेक प्रकार के रथ मेरे मन को प्रमुदित करेंगे । इन्द्र के ऐरावत हाथी को भी मात देने वाले करोड़ों हाथो मेरे चित्त को हर्षित्त करेंगे। इन्द्र के घोड़े की चाल को भी लजित करने वाले करोड़ों घोड़े मेरे मन को सतुष्ट करेंगे। मेरे सन्मुख दौड़ते हुए, मुझे दिल से चाहने वाले, दूसरों (शत्रुओं) को भगा देने में कुशल, परस्पर एक मन वाले और शत्रुनों के साथ गुप्त रीति सेनहीं मिलने वाले संख्यातीत पैदल सेना मेरे मन को उल्लसित करेगी। प्रतिदिन नमन करने वाले अनेक राजाओं के मकुटों में खचित मणिरत्नों की प्रभा से मेरे चरण रक्तवर्णी होंगे। विशाल भूमि का मैं मण्डलाधिपति महाराजा होऊँगा। बुद्धि-चातुर्य में देवताओं के मन्त्री बृहस्पति को भी पराजित करने वाले महामात्य (महामन्त्री) मेरे र ज्यतन्त्र का संचालन करेंगे।' उपरोक्त सारी अभिलाषाये उस दरिद्री की स्वादिष्ट भिक्षा की इच्छा के समान ही इस जीव की इच्छाएं समझें। शारीरिक पुष्टता के वितर्क
पुनः यह जीव विचार करता है --'विपुल समृद्धि का स्वामी होने से, चिन्ता रहित होने से और समस्त प्रकार के सांधनों से परिपूर्ण होने से मैं विधि पूर्वक 'कुटीप्रावेशिक' रसायन बनाऊँगा। इस रसायन के प्रयोग से शरीर पर झुरियाँ, सफेद बाल, गंजापन आदि किसी भी प्रकार को खोटों से रहित, बुढ़ापा और मरण के विकार से रहित, देवकुमारों से भी अधिक कान्ति-दीप्ति वाला, समस्त प्रकार के विषयों के भोग भोगने में समर्थ तथा महाबलशाली मेरी देह हो जाएगी।' इस प्रकार के इस जीव के ये मनोरथ पूर्वकथित भिखारी को भिक्षा प्राप्त होने पर के एकान्त स्थान पर ले जाने के मनोरथ के समान ही समझे।
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